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________________ २७२ अहिंसा-दर्शन . सुना है, भारत के कुछ प्रान्तों में तो नौ रुपये सैकड़ा तक ब्याज लिया जाता है । फिर भी गरीब रुपये लेने को तैयार हो जाता है। आवश्यकता पड़ने पर वह रुपया ले लेता है, पर जब परिस्थितियों से लड़ कर भी वह रुपया अदा नहीं कर पाता, तो सूदखोर साहूकार उसका माल-असवाब और घर तक नीलाम करा लेता है। इस तरह गाँव के गाँव बर्बाद हो जाते हैं । एक भारतीय राजर्षि ने राजा को राज-धर्म बतलाते हुए कहा है "हे राजन् ! तेरी प्रजा तेरी गाय है । तू उसका दूध दुह सकता है, क्योंकि तू उसकी रक्षा करता है और समय-समय पर उसे अन्याय से बचाता है, और जब लुटेरे उसे लूटते हैं तब तू देश को लूटमार से बचाता है । इस प्रकार जब तू प्रजा की सेवा करता है तो इसका प्रतिफल तुझे टैक्स के रूप में मिलता है। जब तक दूध आता है, तू अवश्य दुह ले; किन्तु जब दूध के बजाय रक्त आने लगे, तो तुझे दुहने का हक नहीं।"५ शाह और बादशाह नीतिकार ने यह बात राजा से कही है। राजा तो राजा है, किन्तु व्यापारी उससे भी ऊँचे हैं। कहा जाता है कि पहला नम्बर शाह का है और बाद में बादशाह का । अभिप्राय यह है कि व्यापारी, सेठ या और भी, लेन-देन का धंधा करने वाला एक तरह से शाही धंधा करता है और समय पड़ने पर राजा भी उससे भीख माँगता है । इस प्रकार उसके व्यापार के हाथ ऐसे हैं कि व्यापारी का स्तर ऊँचा माना जाता है और राजा का नीचा। ___ जब साहूकार को इतना ऊँचा दर्जा मिला है तो उसे सोचना चाहिए कि उसके कर्जदार की क्या हालत है ? कर्जदार की आर्थिक स्थिति जब तक ठीक है, तब तक उससे न्याय-नीतिपूर्वक अपना हिस्सा लिया जाए। परन्तु जब उसकी स्थिति ठीक न हो, तो उसे और अधिक देना चाहिए तथा व्यवसाय का लाभप्रद उपाय बताना चाहिए, जिससे कि अमुक ढंग से कार्य करने पर उसका घर भी बन जाए और जब उसका घर बन जाएगा तो स्वयं कमाने भी लगेगा। यह पद्धति ठीक नहीं कि किसी को रुपया तो दे दिया, किन्तु फिर कभी यह मालूम ही नहीं किया कि वह किस अनुचित एवं हानिकारक ढंग पर लगाया जा रहा है। कर्जदार आपत्ति-सागर में से ऊपर उभर कर आ रहा है या अधिकाधिक गहराई में डूबता जा रहा है ? रुपया दिया जाता है, तो साथ मानवीय उदारता तथा प्रेम भी दिया जाना चाहिए । और प्रेम-दान का सच्चा अर्थ यह है वह कर्जदार भी आपके परिवार का एक सदस्य बन गया है । और जब सदस्य बन गया है तो वह आपका एक अभिन्न अंग बन चुका है । इस तरह, जैसे आपको अपने परिवार की चिन्ता रहती है, वैसे ही उसकी भी समानरूप से चिन्ता करनी चाहिए और उसके काम-धन्धे आदि के सम्बन्ध में बराबर पूछताछ करते रहना चाहिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001265
Book TitleAhimsa Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1976
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size22 MB
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