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________________ अहिंसा-दर्शन में अधर्म है । जैन धर्म छापा या तिलक वगैरह में धर्म-अधर्म नहीं मानता। यहाँ तो एक ही तराजू है, एक ही मापक है और वह दुनिया से निराला मापक है— विवेक २७० रुपया क्या है ? और इसकी क्या उपयोगिता है ? यह तो बोझ की तरह है । एक रुपया यदि तिजोरी में बन्द कर दिया जाए और कई वर्षों के वाद उसे निकाला जाए, तो वह एक का एक ही निकलेगा । अनेक वर्ष बीत जाने पर भी दूसरा रुपया उससे पैदा नहीं हो सकेगा । इस प्रकार वह अपने आप में बाँझ है । जब आप उसे किसी उद्योग-धन्धे में लगाते हैं, खेती-बाड़ी में लगाते हैं, या ब्याज में लगा देते हैं; और जब रुपया आदान-प्रदान के फलस्वरूप हलचल में आता है, तभी वह जिन्दा होता है । इसके विपरीत जब तिजोरी में कैद रहता है तो मुर्दा बन जाता है । इस प्रकार रुपया दो तरह का है -- मुर्दा रुपया, और जिन्दा रुपया । कहने का आशय यह नहीं समझा जा सकता कि रुपये सजीव और निर्जीवदोनों तरह के होते हैं । कभी-कभी गलतफहमी भी हो जाया करती है । जैसे बुद्ध के शिष्य आनन्द ने चाण्डालकन्या के हाथ का पानी पिया था, ऐसा कहने से समझ लिया जाता है कि आनन्द श्रावक ने ही पानी पी लिया । रुपए के जीवित होने का अर्थ इतना ही है कि- — जब रुपया हलचल में आता है तो वह व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र के लिए 'खाना' ला कर देता है । और मुर्दा होने का अर्थ है कि- जब वही रुपया चारों ओर से हट कर जमीन में दब जाता है या तिजोरी में बन्द हो जाता है तो वह किसी व्यक्ति के लिए, समाज के लिए या राष्ट्र के लिए भोजन नहीं ला सकता । यही रुपए का मुर्दापन है । इसीलिए गृहस्थ उसे चलता-फिरता रखना चाहता है । परन्तु रुपए को क्रियाशील बनाते समय यह ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि मेरा रुपया अनीति और अन्याय के मार्ग पर न चले, न लगे । पर दुर्भाग्यपूर्ण कठिनाई यही है कि इस बात का ध्यान नहीं रखा जाता । किसी धनी व्यक्ति के पास जब एक सेठ आता है और कुछ रुपया चाहता है तो ब्याज की दर कम हो जाती है । किन्तु जब एक साधारण आदमी आता है, जिसको रुपए की अनिवार्य आवश्यकता है, जो पैसे के अभाव में खिन्न चित्त और दुखी है, और यहाँ तक कि पैसे के बिना उसका परिवार भूखों मर रहा है। उसने व्यापार किया है और उसमें उसे गहरी चोट लगी है । अब उसे पैसे की आवश्यकता पड़ गई है और न मिलने पर उसका परिवार बर्बाद हो सकता है और उसकी आबरू को धक्का लग सकता है । यदि समय पर रुपया मिल जाता है तो वह अपनी और अपने परिवार की जिन्दगी बचा सकता है, और अपनी इज्जत भी कायम रख सकता है । किन्तु खेद है, उसकी आवश्यकता को अनुभव करके रुपये वाले की तरफ से ब्याज की दर बढ़ा दी जाती है । इसका स्पष्ट अभिप्राय तो यही हुआ कि शक्तिशाली हाथी पर तो भार कम लादा जाता है, और अशक्त खरगोश पर ज्यादा से ज्यादा लादने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001265
Book TitleAhimsa Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1976
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size22 MB
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