SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अहिंसा-दर्शन सत्य वही, जो अहिंसा से अनुप्राणित हो ___ भगवान् महावीर ने सत्य को भगवान कहा है-'तं सच्चं खु भगवं ।' लेकिन खेद है कि आज का मनुष्य उस सत्य-स्वरूप भगवान के साथ भी खिलवाड़ कर रहा है । सत्य की ओट में झूठ बोल कर अपने स्वार्थ की सिद्धि में लगा है। कुछ सत्य के दीवाने इस प्रकार के भी मिलते हैं, जो यह नहीं देखते कि जिस सत्य को हम बोल रहे हैं, उससे स्वयं का, समाज का और राष्ट्र का हित होगा कि नहीं ? जो हित न साध सके वह सत्य कैसा ? सत्य वही है जो अपना और पराया दोनों का हित साधता है । मुझे स्मरण है, एक सज्जन, जो सत्य पर अत्यधिक बल देता था, सत्य बोलना उसके जीवन का उद्देश्य बन गया था। एक बार वह अपने पुत्र के साथ रेल में बैठ कर कहीं जा रहा था । चलती गाड़ी में उसने अपने लड़के की ओर देखा तो उसे लगा कि यह तो गाड़ी में बैठने के लिए पूरा टिकट लेने के योग्य हो गया है, आज इसका प्रातःकाल का जन्म-दिन है, अतः प्रातःकाल से यह आधे टिकट की काल-सीमा को पार कर गया है । पर, मैंने इसका आधा ही टिकट ले रखा है, यह सरकार की चोरी है । चोरी ही नहीं, यह मेरे लिए असत्य भी है। यह पाप है, मुझे इस प्रकार नहीं करना चाहिए था। मैंने ऐसा किया ही क्यों ? उसने विचार किया कि मैं अभी इस लड़के का पूरा टिकट ले कर सरकार की चोरी से मुक्त हो सकता हूँ। उसने जंजीर खींच कर चलती गाड़ी को एक निर्जन एवं विकट वन में रोक लिया, जहाँ दिन में भी चोर, डाकू और लुटेरे रहते थे। गाड़ी क्यों रुकी ? किसने रोकी ? सभी यात्रियों के मुख पर यही प्रश्न था। खोज-बीन करने पर पता लगा कि इस गाड़ी में एक सत्यपालक सज्जन अपने पुत्र के साथ यात्रा कर रहे हैं, उसी ने गाड़ी को रोका है। सभी लोग कहने लगे कि यह कैसा नासमझ व्यक्ति है ? यह कैसा सत्य-प्रेमी व्यक्ति है ? अपने सत्य-पालन के प्रदर्शन के लिए हम सभी को इसने संकट में डाल दिया है। सत्य बोलना, सत्य का पालन करना, और सत्य का प्रदर्शन करना, इसमें बड़ा अन्तर है ? मनुष्य का सत्य इस प्रकार का सत्य नहीं बन जाना चाहिए कि किसी के ऊपर संकट का पहाड़ टूट पड़े । जिस सत्य से हिंसा और वैर की ज्वाला फूट निकलती हो, वह सत्य क भी सत्य नहीं हो सकता। भगवान् महावीर ने साधकों को सम्बोधित करते हुए कहा था कि तुम सत्य के उपासक हो, तुमको सर्वत्र सत्य की साधना करनी है, लेकिन कभी इस प्रकार का सत्य मत बोलो, जिससे किसी की आत्मा को कष्ट पहुँच सकता हो। विचार कीजिए, कोई सत्य का साधक मार्ग में चला जा रहा हो, सामने से कोई शिकारी अपने शिकार का पीछा करता आ रहा हो । इस प्रकार की स्थिति में यदि वह शिकारी उस साधक से पूछता है कि क्या तुमने किसी पशु को इधर जाते देखा है ? यही स्थिति गुण्डों द्वारा किसी सती-साध्वी का पीछा करने में है, और निरपराध यात्रियों को लूटने और उनका अपहरण करने में है । भगवान् महावीर कहते हैं-इस प्रकार की स्थिति में साधक को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001265
Book TitleAhimsa Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1976
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy