________________
२४०
अहिंसा-दर्शन
कोई बीमार किसी वैद्य से एक नुस्खा लिखवा लाए, जिसमें उत्तम से उत्तम औषधियाँ लिखी हों और उसे सुबह-शाम पढ़ लिया करे, तो क्या उसकी बीमारी दूर हो जाएगी? नहीं, नुस्खा पढ़ लेने मात्र से बीमारी दूर नहीं हो सकती। यदि कहीं ऐसा पाया जाए, तब तो यह भी माना जा सकता है कि शास्त्रों के पाठ रट लेने और उगल देने से ही पवित्रता प्राप्त हो जाती है; किन्तु ऐसा होना कभी सम्भव नहीं है, और न होगा ही। एक साधक ने कहा है-'जो भी शास्त्र मुझे पढ़ना है, उसे मैं जीवन से पढूंगा, केवल जीभ से ही नहीं पढ़ गा, भला, जिह्वा के उच्चारण मात्र से क्या होने वाला है ? आयुर्वेद की पुस्तकों के रट लेने और चरक तथा सुश्रु त को सीख लेने मात्र से कोई नीरोग नहीं हुआ है । 3 हजार वर्ष तक रटते रहिए तब भी उससे साधारण-सा बुखार और जरा-सा सिर-दर्द भी दूर नहीं होगा, उल्टा शरीर गलता जाएगा और सड़ता जाएगा।
जैसे इस बात को हम सभी भली-भाँति समझते हैं कि आयुर्वेद को कण्ठस्थ कर लेने मात्र से रोग दूर नहीं होता। यही बात संसार के धर्म-शास्त्रों के सम्बन्ध में भी समझनी चाहिए । जितने भी धर्म-शास्त्र हैं, सब हमारी चिकित्सा करने के लिए ही हैं । जिस प्रकार आयुर्वेद से शरीर की चिकित्सा-विधि जानी जाती है, उसी प्रकार धर्मशास्त्र से मन और आत्मा की चिकित्सा का ज्ञान होता है। हमारे भीतर जमी हुई वासना और विकार ही मन और आत्मा की बीमारी हैं। किसी को क्रोध की, किसी को मान की, किसी को माया की, और किसी को लोभ की विभिन्न बीमारियाँ सता रही हैं। किसी भी धर्म-शास्त्र को ले लीजिए, उसमें इन सभी बीमारियों की चिकित्सा का समुचित विधान है, परन्तु उन शास्त्रों को पढ़ लेने मात्र से कुछ भी हाथ लगने वाला नहीं है । शास्त्रों को व्यावहारिक जीवन में उतारने से ही लाभ हो सकता है । हरिश्चन्द्र की कहानी पढ़ने या सुनने मात्र से सत्यवादी नहीं बना जा सकता, किन्तु हरिश्चन्द्र के सत्याचरण का अनुसरण करने से ही सत्यवादी बन सकेंगे।
आपने सुदर्शन की कथा तो सुनी होगी ? मला, उसने अपने जीवन की पवित्रता के लिए क्या नहीं किया ? सती सीता और सती मदनरेखा ने कितनी आपत्तियाँ सहन की ? फिर भी वे सही रास्ते को पकड़े रहे और उसी रास्ते पर दृढ़ता के साथ कदम बढ़ाते गए ! इसीलिए वे इतिहास के पृष्ठों में आज भी अमर हैं।
अभिप्राय यह है कि जीवन की उच्चता और पवित्रता की मंजिल पर जो भी पहुंच चुके हैं और जिनकी स्तुति तथा आराधना करके हम अपने आपको आज भाग्यशाली समझते हैं वे केवल पुरुषार्थ के द्वारा ही महान् बने थे। बड़ी-बड़ी साधनाओं के
३ कायेनैव पठिष्यामि वाकपाठेन तु किं भवेत ?
चिकित्सापाठमात्रेण, न हि रोगः शमं व्रजेत् ।।
-बोधिचर्यावतार
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org