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अहिंसा - दर्शन
एक वृद्ध सज्जन मेरे पास बैठे थे । इतने में एक बच्चा आया तो उसे बड़े प्रेम से अपने पास ले लिया । सिर पर हाथ फिराते हुए इतना स्नेह जताने लगे कि मैंने सोचा - कितना प्रेम और स्नेह है इनके मन में ! इतने में मुँह बना कर वे महाशय बोले"महाराज ! कितना अच्छा लड़का है ! पर बिचारे का भाग्य फूट गया, माँ मर गई । अब सौतेली माँ है | कुछ भी संभाल नहीं रखती । अच्छी तरह खाना भी नसीब नहीं है, कितना दुबला हो गया है !" मैंने सोचा - यह प्यार और दया की भाषा में बच्चे के दिल में अभी से घृणा के काँटे क्यों बो रहा है, माँ के प्रति अभी से नफरत क्यों पैदा कर रहा है ? क्या सभी सौतेली माँ बुरी होती हैं ? जब तक संसार में सुमित्रा जैसी सौतेली माँ का आदर्श जीवित है, तब तक क्यों यह सोचा जाता है कि सौतेली माँ मिल गई तो तकदीर ही फूट गई !
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रामायण का प्रसंग कितना मार्मिक है ! जब राम वन जाने की तैयारी कर रहे हैं । राम वन को जा रहे हैं और सुमित्रा खड़ी देख रही है कि राम अकेले ही क्यों जा रहे हैं ? लक्ष्मण कहाँ रह गया ? वह भाई के साथ वन में क्यों नहीं जा रहा है ? तभी लक्ष्मण आ जाते हैं और माता को नमस्कार करके राम के साथ वन में जाने की आज्ञा माँगते हैं, तो सुमित्रा कहती है- "बेटा ! तू इतनी देर कहाँ रहा ? राम वन को जा रहे हैं और तू अभी तक घर में बैठा है ?" लक्ष्मण कहते हैं - " मैं माता कौशल्या को नमस्कार करके अब आपकी आज्ञा लेने आया हूँ माँ !" तो सुमित्रा कह उठी"मेरी तो आज्ञा कभी से हो गई है। जल्दी जा, देर न कर । राम के साथ वन में रहते हुए यह मत समझना कि "मैं व्यर्थ ही जंगल में भटक रहा हूँ । मेरे माता-पिता यहाँ नहीं हैं। राम को तू अपने पितातुल्य समझना । पिता के प्रति पुत्र की जो आदर और भक्ति होनी चाहिए, उसी भक्ति और आदर की दृष्टि से राम को देखना । और मेरे प्रति जो तेरा मातृस्नेह और श्रद्धा है, वही स्नेह और श्रद्धा सीता के प्रति रखना । सीता को सीता नहीं, माँ सुमित्रा समझना और वन को अयोध्या मानना ।"२
मैं पूछता हूँ — यह कौन बोल रही है ? एक सौतेली माँ बोल रही है, जो अपने प्राणों से प्रिय पुत्र को सौतेले भाई के साथ निर्जन वनों की ठोकरें खाने के लिए भेज रही है ? क्या वह यह नहीं कह सकती थी - 'राम जाए तो जाए, तुझे क्या पड़ा है ? तू वहाँ उसके साथ वनों में क्यों मारा-मारा फिरता है ?" पर नहीं, सुमित्रा के हृदय का स्नेह, प्रेम और सौहार्द राम और लक्ष्मण को दो सौतेले भाई नहीं, सगे भाई समझता है ।
इस प्रकार हम देखते हैं कि लोग किसी माँ की सुमित्राओं को नहीं देखते, वह तो एक स्वर से सौतेली माँ की
२ " रामं दशरथं विद्धि मां विद्धि जनकात्मजाम् । अयोध्यामटवीं विद्धि, गच्छ पुत्र ! यथासुखम् ||"
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अच्छाई को नहीं देखते, बुराइयों का ही प्रचार
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