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________________ घृणा : समग्र समाज में व्याप्त हिंसा का मूल २१६ उसने सँसार पर विजय पा ली। घृणा पर विजय पाने वाला विश्व का सबसे बड़ा विजेता है।" बुराई घृणा से नहीं, प्रेम से मिटती है घृणा कब और क्यों पैदा होती है ? इस प्रश्न पर जब विचार करते हैं, तो ऐसा लगता है कि यह एक प्रकार का मानसिक उन्माद है, एक दुराग्रही वेग है, जो विनाश के मार्ग पर बह रहा है, मानवजीवन को बर्बाद कर रहा है । जीवन में बुराइयाँ और गलतियाँ होती हैं, भूलें होती हैं और उनका परिमार्जन भी किया जाता है, प्रतिवाद भी किया जाता है, उन्हें सुधारने के प्रयत्न भी होते हैं । जब रोग है, तो उसे दरगुजर नहीं किया जा सकता, उसका प्रतिकार और उपचार करना ही पड़ेगा। बुराई के साथ संघर्ष करने का मनुष्य को अधिकार है और यदि वह अधिकार छीन लिया जाए तो संसार में रावणों का राज्य छा जाएगा। मनुष्य की नैतिकता और सच्चरित्रता का फिर कुछ भी मूल्य नहीं रह पाएगा। जीवन का विकास अवरुद्ध हो जाएगा और एक दिन धीरे-धीरे वह समाप्त ही हो जाएगा। अतएव भूलों के साथ संघर्ष तो होना चाहिए और वह जीवट के साथ होना चाहिए। मनुष्य अपनी भूलों से संघर्ष करे, अपनी बुराइयों से लड़े। यदि बुराई परिवार में है तो उसे सुधारने के लिए कटिबद्ध रहे। समाज का क्षेत्र तो भूलों का एक केन्द्र ही बन रहा है। व्यक्तियों के जीवन की बहती हुई अनेक भूलें वहाँ आ कर एकत्र हो जाती हैं। यदि समय पर उनका परिहार या परिष्कार नहीं किया जाए तो समाज में अव्यवस्था, अशान्ति और अनास्था का वातावरण पैदा हो जाता है। हम भूलों को परिष्कृत करने की बात करते हैं, इससे पहले अपने परिष्कार की बात भी सोच लेनी चाहिए। जिस व्यक्ति, परिवार या समाज की भूलों की हम बात करते हैं, उनके प्रति हमारे मन में घृणा का भाव तो नहीं है ? व्यक्तिगत द्वेष या घृणा से प्रेरित हो कर तो हम उसकी ओर अंगुली नहीं उठा रहे हैं ? यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण प्रश्न है। यदि मन में घृणा है तो बुराई साफ नहीं होगी, भूलों का सुधार नहीं हो सकेगा, अपितु और अधिक गंदगी फैलेगी, भूलें और अधिक उलझ जाएंगी। नफरत से कभी बुराई मिटती नहीं, बल्कि और अधिक बढ़ती हैं । वस्त्र पर लगे खून के दाग को धोने का यह तरीका नहीं है कि उसे खून से साफ किया जाए । खून का दाग खून से नहीं, अपितु पानी से साफ किया जाता है। आग को आग से नहीं बुझाया जाता, वह पानी से बुझाई जाती है। बुराई में एक और बुराई डाल कर हम उसे मिटाना चाहें, तो वह मिट नहीं सकेगी, बल्कि एक के बाद एक बुराइयों की एक लम्बी परम्परा खड़ी होती चली जायेगी। इसलिए बुराई को मिटाने का प्रयत्न करने से पहले यह देखना चाहिए कि हमारे मन के किसी एक कोने में वह गन्दगी छिपी तो नहीं है, जिसे हम बाहर से मिटाना चाहते हैं। यदि भीतर में कहीं गन्दगी दबी रही, तो बाहर की सफाई निरर्थक होगी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001265
Book TitleAhimsa Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1976
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size22 MB
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