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________________ २०८ अहिंसा-दर्शन सम्बन्ध तो नहीं चल रहा है ? यदि कहीं घृणा चल रही है तो वह 'सामाजिक हिंसा' कहलाएगी। इसी प्रकार यदि एक प्रान्त की दूसरे प्रान्त के साथ, और एक देश की दूसरे देश के साथ घृणा चल रही है तो वह भी एक प्रकार की 'सामाजिक हिंसा' ही कहलाती है। जैन-धर्म एक विराट् धर्म है। जन-कल्याण के लिए वह महान् सन्देश ले कर आया है। उसका मूलभूत सन्देश यह है कि-"विश्व के जितने भी मनुष्य हैं, वे सभी मूलत: एक हैं । कोई भी जाति अथवा कोई भी वर्ग मनुष्य-जाति की मौलिक एकता को भंग नहीं कर सकता।" इस सम्बन्ध में आचार्य जिनसेन ने स्पष्ट शब्दों में घोषणा की है-"मनुष्य-जाति में जो अलग-अलग वर्ग दिखलाई देते हैं, वे बहुत कुछ कार्यों के भेद से धन्धों के भेद से हैं।"१ कुछ त्रुटियों और भूलों के कारण भी चल रहे हैं । परिवर्तन ने समाज की परिस्थितियों को इतना बदल दिया है कि वह अखण्ड मानवजाति आज खण्ड-खण्ड हो गई है और न जाने कितने वर्गों एवं वर्गों में विभाजित हो गई है। वर्ग-व्यवस्था भगवान् ऋषभदेव के समय में जब समाज की स्थापना की गई थी तो हमारी मान्यता के अनुसार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र-ये चार वर्ग या वर्ण कायम हुए। इन वर्गों का एकमात्र आधार उद्योग-धन्धा था। समाज की विभिन्न प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ही ये वर्ग स्थापित किये गये थे। एक वर्ग का काम था कि वह समाज को शिक्षित करने के लिए अध्यापक का काम करे, जनता को सही रास्ता दिखलाने का प्रयत्न करे और यदि समाज में भूल और भ्रान्तियाँ उत्पन्न हों तो उन्हें उचित ढंग से ठीक करे। इस प्रकार यह वर्ग ब्राह्मणवर्ण कहलाया। आज की भाँति इस ब्राह्मणवर्ग को निमंत्रण दे कर जिमाने के लिए तैयार नहीं किया गया था और न यह कहने के लिए ही कि-"मैं बहुत ऊँचा एवं पवित्र हूँ और सब मुझसे नीचे हैं, अपवित्र हैं। संसार के साथ मेरा जो कुछ भी सम्बन्ध है, वह देने का नहीं; सिर्फ लेने ही लेने का है।" इस मनगढन्त सिद्धान्त पर ब्राह्मणवर्ण की स्थापना नहीं हुई थी। ___ जैसे बड़ी मछली छोटी मछली को निगल जाती है, उसी प्रकार शक्तिशाली लोग अशक्तों एवं असमर्थों का शोषण करना चाहते हैं। यदि शक्तिमान् लोग न्याय और अन्याय को कभी तोलते भी हैं तो उनकी तराजू अपनी बुद्धि होती है और बांट १ 'मनुष्य-जातिरेकैव, जातिकर्मोदयोद्भवा ।। -आदिपुराण २ भगवान् ऋषभदेव ने क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र; ये तीन वर्ण स्थापित किए थे। तत्पश्चात् उनके पुत्र भरत चक्रवर्ती ने ब्राह्मणवर्ण की स्थापना की। --आचार्य जिनसेन-कृत आदिपुराण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001265
Book TitleAhimsa Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1976
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size22 MB
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