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________________ अहिंसा का युगसापेक्ष महत्त्व १५५ पाकिस्तान का शासन सौंप दिया जाएगा। और इसी संदर्भ में जब बंगबंधु मुजीब के दल ने स्पष्ट बहुमत प्राप्त कर लिया तो याह्या खाँ ने उन्हें पाकिस्तान का भावी प्रधानमन्त्री कह कर सम्बोधित भी किया था। किन्तु जल्दी ही वे सत्तालोलुप निरंकुश फौजी जनरलों के हाथों में खेल गए। और समझौतावार्ता का नाटक खेलते-खेलते शक्तिसंग्रह कर अचानक निरपराध जनता पर आक्रमण कर खून की होली खेलनी शुरू कर दी । पागलपन की भी एक सीमा होती है । किन्तु मालूम होता है-- पाकिस्तान के मनमस्तिष्कविहीन शासकों में इसकी भी कोई सीमारेखा नहीं है। छहसूत्री कार्यक्रमों की सार्वजनिक घोषणा के आधार पर जिसने चुनाव लड़ा और भारी बहुमत से विजयी हुआ, फलस्वरूप जिसे पाकिस्तान का भावी प्रधानमन्त्री तक कहा जाता रहा, वह एक ही रात में देशद्रोही हो गया, गद्दार हो गया, और अब उसके लिए गुप्त सैनिक अदालत में इन्साफ का ड्रामा खेल कर फांसी का फंदा तैयार किया जा रहा है। यह विवेकभ्रष्टों का वह पतन है, जो शतसहस्रमुख होता है, जिसकी सीमारेखा नहीं होती। आश्चर्य है-नाममात्र की हलचल के बाद विश्व के बड़े-बड़े राष्ट्र चुप हैं । और इससे भी अधिक आश्चर्य है उन अहिंसा, दया और करुणा के उद्घोषक धर्मगुरुओं पर, जिनकी दृष्टि में जैसे कुछ हो ही नहीं रहा है । कहाँ है वह अहिंसा, कहाँ है वह करुणा, कहाँ है वह मानवता, जिसके ये सब दावेदार बने हुए हैं ? क्या धर्म मरने के बाद ही समस्याओं का समाधान करता है ? इस धरती पर जीते जी कोई समाधान नहीं है उसके पास ? ____ अहिंसा पर नये सिरे से विचार करने का अवसर आ गया है । लगता है अहिंसा के पास करने जैसा कुछ नहीं रहा है । वह सब ओर से सिमट कर एक 'नकार' पर खड़ी हो गई है । नकार की अहिंसा में प्राणवत्ता नहीं रहती, वह निर्जीव हो जाती है । अहिंसा का अर्थ अब हिंसा न करना है, वह भी एकांगी, स्थूल, दिखावाभर, साथ ही तर्कहीन ! जीवनचर्या के कुछ अंग ऐसे हैं, जिनमें बाहर से तो अहिंसा जैसा लगता है, किन्तु अगल-बगल की-अन्दर की पृष्ठभूमि में झाँक कर देखें तो हिंसा का नग्न नृत्य होता नजर आता है। दूसरी ओर अहिंसा हिंसा को सहने भर के लिए हो गई है । बर्बर अत्याचार हो रहा हो, दमन चक्र चल रहा हो, बेगुनाहों का कत्लेआम हो रहा हो, और हम अहिंसावादी चुपचाप यह सब सहन करते जाएँ, उफ तक न करें। और इस पर यश के ढोल पीटते जाएँ कि हम कितने साधुपुरुष हैं, कितने क्षमाशील संयमी हैं ? ___ आज अहिंसा अन्याय एवं अत्याचार के विरोध में अपनी प्रचण्ड प्रतीकार शक्ति खो चुकी है। अहिंसा हिंसा को केवल सहन करने के लिए नहीं है। उसे हिंसा पर प्रत्याक्रमण करना चाहिए । गांधीजी के युग में ऐसा कुछ हुआ था, परन्तु जल्दी ही अहिंसा के इस ज्वलंतरूप पर पाला पड़ गया और अहिंसा ठंडी हो गई । आज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001265
Book TitleAhimsa Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1976
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size22 MB
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