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________________ १५४ अहिंसा-दर्शन है। और यह सब हो रहा है देश, धर्म और संस्कृति की रक्षा के नाम पर ! मानवजाति पर कुछ अत्याचार भूतकाल में भी हुए हैं । इन्सान ने सुन्दर एवं मोहक आदर्शों के नाम पर कुछ कम कष्ट नहीं भोगे हैं। किन्तु पाकिस्तान बांगलादेश में जो कुछ कर रहा है, उसका उदाहरण इतिहास में खोजे नहीं मिल रहा है । आवश्यकता है-आज का प्रबुद्ध जनसमाज इन लोमहर्षक अत्याचारों की मुक्तभाव से भर्त्सना करे, प्रतिरोध के लिए एकजुट हो जाए । पाकिस्तान की अक्ल ठिकाने पर लाने के लिए कुछ और विशेष करने की अपेक्षा नहीं है। अपेक्षा है केवल सामूहिक रूप में नैतिक आक्रमण की, असहयोग की। पाकिस्तान को जो विश्व के राष्ट्रों से सहयोग मिल रहा है, शस्त्रास्त्र और आर्थिक रूप में, यदि वह बन्द कर दिया जाए तो पाकिस्तान तत्काल घुटने टेक सकता है। किन्तु खेद है, यह कुछ हो नहीं रहा है । धरती पर के अनेक राष्ट्र केवल अपने स्वार्थ की भाषा ही सोचते हैं, मानवता की भाषा में नहीं । विश्व के मानवतावादी बड़े-बड़े राष्ट्र यह सब अत्याचार मुंदी आँखों से देख रहे हैं, बहरे कानों से उक्त काले कारनामों की कथा सुन रहे हैं। रोज समाचारपत्रों के पृष्ठ के पृष्ठ रंगे होते हैं कि बंगलादेश में जघन्य हत्याकाण्ड हो रहे हैं, मानवता को लजा देने वाले अत्याचार हो रहे हैं, फलस्वरूप अपनी जान और इज्जत बचा कर भारत में लाखों ही स्त्री-पुरुष, बूढ़े-बच्चे शरण के लिए आ गये हैं, अब भी आ रहे है। किन्तु बड़े राष्ट्र हैं कि देख कर भी अनदेखा कर रहे हैं, सुन कर भी अनसुना कर रहे हैं । ऐसा भी नहीं कि चुप हो कर निरपेक्ष बैठे हैं, अपितु विपरीतदिशा में चल रहे हैं । अमेरिका जैसा महान् राष्ट्र एक ओर भारत में आए पीड़ित बंगाली प्रवासियों के लिए लाखों डालर की सहायता दे रहा है, और दूसरी तरफ यह खबर भी है कि अमेरिका पाकिस्तान को शस्त्रास्त्रों से लदे जहाज भेज रहा है, भयानक हथियारों की मदद दे रहा है। ताज्जुब है कि एक ही देश एक तरफ घातक हथियार दे कर नर-संहार को बढ़ावा देता है, और दूसरी तरफ वही देश जान बचा कर भारत में भाग कर आए शरणार्थियों की रक्षा के लिए धन-प्रदान कर सहायता का हाथ बढ़ाता है ? यह कैसी विचित्र विसंगति है। चाहिए तो यह था कि शस्त्रास्त्रों की सहायता तत्काल बन्द कर सर्वप्रथम पाकिस्तान की सैनिक जुटा को होश में लाया जाता, उसके क्रूर इरादों को बदला जाता, पश्चात्ताप के लिए मजबूर किया जाता, और बंगलादेश की पीड़ित जनता के अधिकारों का उचित संरक्षण किया जाता, और फिर प्रवासी समस्त लोगों की जान-माल की रक्षा का प्रयत्न किया जाता, एवं उन्हें जल्दी ही अपनी प्रिय जन्मभूमि में वापस भेजा जाता। कहने की बात नहीं कि बंगबंधु मुजीब को बांगलादेश की करोड़ों मुस्लिम, ईसाई, हिन्दू, बौद्ध जनता ने अपना नेता चुना था, मुजीब के अवामी दल को अपना पूर्ण समर्थन प्रदान कर बांगलादेश में लोकतन्त्र की स्थापना की ओर कदम बढ़ाया था। राष्ट्रपति याह्या खाँ ने चुनाव से पूर्व वायदा किया था कि चुनाव के बाद सैनिक शासन समाप्त कर दिया जाएगा और जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों के हाथों में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001265
Book TitleAhimsa Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1976
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size22 MB
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