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________________ अहिंसा-दर्शन पुण्य - प्रकृति का भी बंध हो जाता है । जल में प्रवेश करने से जो हिंसा हुई है, उससे इन्कार नहीं किया जा सकता । किन्तु मुख्य प्रश्न तो यह है कि उससे हुआ क्या ? क्या वह पाप का मार्ग है अथवा पुण्य का या निर्जरा का है ? इस स्थिति में जैन-धर्म तो यह कहता है कि जो साधु पानी में गया है, वह पानी के जीवों को मारने के लिए नहीं गया है और न वह मछलियों को ही पीड़ा पहुँचाने की भावना लेकर गया है; अपितु एक संयमी को बचाने की पवित्र भावना ले कर गया है । ऐसी स्थिति में यदि कोई हिंसा हो गई है, तो वह किसी अनर्थ की सिद्धि के लिए नहीं हुई है । किसी जीव की स्वतः हिंसा हो जाना एक बात है, और किसी की हिंसा करना दूसरी बात है । अनेक बार प्रायः हम गलती से कह देते हैं कि अमुक की हिंसा की गई है, किन्तु होने और करने के भेद को समझने का प्रयत्न नहीं करते और इसी कारण किसी की स्वतः हिंसा हो जाने पर उसे हिंसा का पापाचार समझ लेते हैं । स्वतः होने में और स्वयं करने में बहुत बड़ा अन्तर है और वह अन्तर भी बाहर में परिलक्षित होने वाले कार्य का नहीं, अपितु भावनाओं का ही विभेद है । १२८ प्रमार्जन एवं प्रतिलेखन जैसा कि पहले कहा गया है कि साधु मकान को या जमीन को पूंजता है और पूँजते समय प्रायः जीव इधर से उधर होते हैं, घसीटे भी जाते हैं, और उन्हें परिताप भी होता है । किन्तु कोई भी उससे पाप का बंध होना नहीं कह सकता, क्योंकि वह परिताप स्वतः पहुँच गया है, दिया नहीं गया है । यदि ऐसा न माना जाए तो पूँजना भी पाप हो जाएगा । हमारे पुराने आचार्यों की कुछ ऐसी धारणाएँ हैं कि उपाश्रय को प्रमार्जित करने वाले साधु को बेले" का लाभ होता है। एक बार उपाश्रय पूँजने से असंख्य जीव मरते होंगे। ऐसा मत समझिए कि जो आंखों से दीखते हैं, वे ही जीव हैं, यहाँ पर हमारी स्थूलदर्शी आँखों का कोई मूल्य नहीं है, क्योंकि वे तो सिर्फ स्थूल जीवों को ही देखती हैं। भले ही आपका आँगन रत्न-जटित क्यों न हो, आपको एक भी जीव वहाँ दिखाई न देता हो; फिर भी यदि आप सूक्ष्मदर्शक यंत्र से देखेंगे तो वहाँ हजारों चलते-फिरते प्राणी दिखलाई देंगे । ऐसी दशा में प्रतिदिन सुबह और शाम के समय प्रतिलेखन करने की आज्ञा क्यों दी गई है ? और उपाश्रय भूमि का प्रमार्जन करना अनिवार्य क्यों बतलाया गया है ? प्रतिदिन का प्रमार्जन हिंसा-रूप है - ऐसा सोच कर यदि प्रमार्जन करना बंद कर दिया जाए तो क्या परिणाम होगा ? फिर कल और परसों क्या होगा ? जीव बढ़ते जाएँगे या घटते जाएँगे ? जितनी जितनी गंदगी बढ़ेंगी, उसी अनुपात से जीवों की उत्पत्ति भी बढ़ती जाएगी। ऐसी स्थिति में आपको दो बातों में से किसी एक के लिए तैयार रहना चाहिए। या तो आप उस मकान में से अपने आपको हटा लें और ८ लगातार दो उपवास करना, बेला कहलाता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001265
Book TitleAhimsa Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1976
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size22 MB
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