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अहिंसा-दर्शन
लक्ष्मी ! मैंने पहले ही कहा था कि तू अपनी चतुराई मत कर, किन्तु तू कब मानने वाली थी ! अब फेंकने के सिवाय इसका और कुछ नहीं बनेगा।"
बहू-“फेंकने का काम तो मैं बिना किसी के बताए ही कर लूंगी। भला, इसमें कौन-से शास्त्रीय ज्ञान तथा गुरु के उपदेश की जरूरत है ? यह कहते हुए आटे के बर्तन को उठा कर बहू उसे सड़क पर फेंकने चली और जब ऊपर की मंजिल की खिड़की के पास पहुँच गई, तब नीचे से बुढ़िया ने पुकार कर निर्देश दिया--"अरी ! तू जिद्द में इसे ले तो गई है, किन्तु भले आदमी को देख कर ही फैकना।"
आज्ञाकारिणी पुत्रवधू इस अन्तिम अवसर पर सास के उपदेश का भला कैसे उल्लंघन करती ? वह किसी भले आदमी के आने और खिड़की के नीचे से गुजरने की प्रतीक्षा करती रही। इतने में ही कोई भला आदमी आता हुआ दिखलाई दिया, और ज्यों ही वह खिड़की के नीचे आया, त्यों ही बहू ने ऊपर से उसके ऊपर आटे का पानी डाल दिया।
सचमुच यदि कोई भला आदमी होता तो शायद उसकी ओर से इतनी उत्तेजना भी पैदा न होती। किन्तु दुर्भाग्यवश वह आदमी सज्जन कहलाने वाले व्यक्तियों में से न था । अपने को आटे के पानी से तरबतर पाकर वह उत्तेजित हो उठा और अपने स्वभाव के अनुसार बेसिर-पैर की अनर्गल बातें बकने लगा। उसकी उत्तेजनापूर्ण बकवास को सुन कर राह चलने वाले लोग इकट्ठे हो गये, और उस व्यक्ति को समझा-बुझा कर विवाद का निपटारा कर दिया।
___ आटे के भाग्य का अन्तिम फैसला करके जब नव-वधू ऊपर से नीचे आ गई तो सास ने पूछा
"अरी पगली ! यह तूने क्या किया ? क्या मेरे बतलाने का यही संतोषजनक फल होना चाहिए था ?"
बहू बोली- 'माताजी, व्यर्थ में क्यों बिगड़ती हो ? जैसा आपने बतलाया, वैसा ही तो मैंने किया। क्या आपने यह नहीं कहा कि भले आदमी को देख कर ही पानी डालना ?" बहू के इस मूर्खतापूर्ण कथन को सुन कर, सास ने अपना माथा ठोक कर गहरी सांस लेते हुए कहा-हाय रे भाग्य ! जो ऐसी सुलक्षणा पुत्र-वधू मिली। एक पगडंडी
हाँ, तो उपर्युक्त कथन का यही तात्पर्य है कि-कोई-स्त्री हो या कोई पुरुष सबकी जीवन-यात्रा का एक ही मार्ग है । ऐसा भूल कर भी नहीं है कि महिलाओं के लिए कोई अलग पगडंडी बनी हो, और पुरुषों के लिए कोई दूसरी। सभी के लिए केवल एक पगडंडी है, और वह है-'विवेक' की। यदि हमारा विचार सुस्थिर है, और विवेक अभीष्ट लक्ष्य-बिन्दु में केन्द्रित है, तो किसी कार्य को स्वयं करना अथवा दूसरों से करवाना, दोनों ही प्रकार के मार्ग निश्चितरूप से ठीक होंगे। विवेक के
द्वारा ही पापों के प्रवाह से बचा जा सकता है । किन्तु जहाँ अविवेक का बाहुल्य है, Jain Education International For Private & Personal Use Only
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