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अहिंसा को त्रिपुटी
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किसी के घर नव-बधू आई । धनिक बाप की पुत्री होने के कारण वह मायके में घरेलू काम-काज नाममात्र को ही करती थी। अतः घर-गृहस्थी के काम में उसको निपुणता प्राप्त न होना स्वाभाविक था।
घरेलू काम-काज में निपुण न होते हुए भी कोई भी नव-बघू यह नहीं चाहती कि उसकी मौजूदगी में सास या ननद भोजन बनावें। अतएव अपने उत्तरदायित्त्व को पहचान कर बधू ने भोजन बनाने की रुचि प्रकट की और रसोईघर में जा पहुंची। परन्तु सास को यह मालूम था कि उसकी पुत्र-बघू भोजन बनाना नहीं जानती; अतः उसने बहू से कहा :
----तू रहने दे बहू, मैं ही खाना बना लूंगी। बहू ---मेरे रहते हुए यह कैसे हो सकता है कि आप खाना बनाएँ ?
सास -अरी ! मुझे मालूम है कि तू भोजन बनाना नहीं जानती; इसलिए रहने भी दे !
बहू -यह कैसे मालूम हुआ कि मैं भोजन बनाना नहीं जानती ? इस दोष को सदैव के लिए दूर करने को मैं अभी भोजन बना कर दिखाए देती हूँ।
यह कह कर बहू भोजन बनाने में जुट गई, और आटा गूथना शुरू कर दिया, किन्तु विचारों की अस्थिरता के कारण आटे में पानी अधिक पड़ गया। जिसका परिणाम यह हुआ कि पानी के आधिक्य ने आटे का लचीलापन समाप्त कर दिया । इस दृश्य को सास गम्भीरतापूर्वक देख रही थी। भला इस अवसर पर वह चुप कैसे रहती ? अस्तु, बुढ़िया बोली-“बहूरानी ! मैंने पहले ही कहा था कि भोजन मैं ही बना लूंगी। क्योंकि तुझे भोजन बनाने का अभ्यास नहीं है। देख ले, तेरे हाथ से आटा पतला हो गया न ! घर में और आटा भी नहीं है, जिससे आटे के पतलेपन को दूर किया जा सके।
___सास के कथनानुसार अपनी अनुभवहीनता प्रमाणित हो जाने पर बहू सहसा सहम-सी गई। परन्तु किसी भी उपाय से पतले आटे का उपयोग करना ही था। अतः धीरज धारण कर विनम्रभाव से बोली-"तो माताजी ! किस उपाय से इस पतले आटे को ठीक किया जा सकेगा ?"
सास-“ऐसे पतले आटे के तो पूए ही बन सकते हैं, सो मैं बनाए देती हूँ।"
बहू---"इसके पूए तो मैं ही बना लूंगी। आप मेरे पास ही बैठी रहें और आवश्यकतानुसार संकेत देती रहें।" बहू के सादर निवेदन को स्वीकार कर बुढ़िया वहीं बैठी रही और पूए बनाने के लिए आटे को और पतला करने के लिए बहू को थोड़ा-सा पानी डालने को कहा। संकेत मिलते ही बहू ने पानी डालना शुरू किया और इसी सनक में इस बार भी पानी अधिक पड़ गया। इस बार आटे का रूप ही बदल गया। अर्थात् सफेद रंग का कोई पतला और तरल पदार्थ दिखाई देने लगा। आटे की इस दुर्दशा ने चाहे बहू को चिन्तित और खिन्नचित्त न बनाया हो, परन्तु बुढ़िया के मन को गहरी ठेस पहुंची और वह उसी गम्भीर भाव से बोली-“अरी
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