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________________ 'सूक्ति त्रिवणी' देखकर प्रसन्नता हुई। हमारे देश में प्राचीन भापाआका अध्ययन धर्म के साथ लगा हुआ है । इससे उसके अध्ययन के विभाग अलग-अलग रखे गये हैं और विद्याथियों को तुलनात्मक अध्ययन का अवकाश मिलता नहीं । आपने मागधी, अर्धमागधी, पालि और संस्कृत सबको साथ करके यह संग्रह किया है, वह बहुत अच्छा हुआ । इससे तुलनात्मक अध्ययन के लिए सुविधा होगी। -प्रबोध वेचरदास पंडित (दिल्ली विश्वविद्यालय) हमारे देश में प्राचीन काल से ही सर्व धर्म समभाव की परम्परा रही है । अपने अपने धर्म में आस्था और विश्वास रखते हुए भी दूसरे धर्मों के प्रति पूज्य भाव रखने को ही आज धर्मनिरपेक्षता कहा जाता है । पूज्य उपाध्याय अमर मुनि ने जैन, बौद्ध और वैदिक धाराओं के सुभाषितों को एक ग्रंथ में संग्रहित करके उस महान परम्परा को आगे बढ़ाया है । 'सूक्ति त्रिवेणी' ग्रंथ के प्रकाशन का मैं स्वागत करता हूँ और आशा करता हूँ कि बुद्धिजीवियों और अध्यात्म जिज्ञासुओं को यह प्रेरणा प्रदान करेगा। -अक्षयकुमार जैन संपादक : नवभारत टाइम्स, दिल्ली-बम्बई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001258
Book TitleSukti Triveni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1988
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Canon, & Agam
File Size3 MB
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