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स्थानांग की सूक्तियाँ
सत्तावन
कुछ बोलते भी हैं, और देते भी हैं । और कुछ न बोलते हैं, न देते हैं ।
३०. क्रोध, ईर्ष्या-डाह, अकृतज्ञता और मिथ्या आग्रह-इन चार दुर्गुणों के
कारण मनुष्य के विद्यमान गुण भी नष्ट हो जाते हैं।
३१. क्षमा, संतोष, सरलता और नम्रता-ये चार कर्म के द्वार हैं।
३२. चार प्रकार के सहवास हैं
देव का देवी के साथ-शिष्ट भद्र पुरुष, सुशीला भद्र नारी । देव का राक्षसी के साथ-शिष्ट पुरुष, कर्कशा नारी, राक्षस का देवी के साथ-दुष्ट पुरुष, सुशीला नारी, राक्षस का राक्षसी के साथ-दुष्ट पुरुष, कर्कशा नारी।
३३. कपट, धूर्तता, असत्य वचन और कूट तुलामान (खोटे तोल माप करना)
-ये चार प्रकार के व्यवहार पशुकर्म हैं, इनसे आत्मा पशुयोनि (तियंचगति) में जाता है।
३४. सहज सरलता, सहज विनम्रता, दयालुता और अमत्सरता-ये चार प्रकार
के व्यवहार मानवीय कर्म हैं, इनसे आत्मा मानव जन्म प्राप्त करता है।
३५. चार तरह के घड़े होते हैं
मधु का घड़ा, मधु का ढक्कन । मधु का घड़ा, विष का ढक्कन । विष का घड़ा, मधु का ढक्कन । विष का घड़ा, विष का ढक्कन ।
[मानव पक्ष में हृदय घट है और वचन ढक्कन ]
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