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________________ एक सौ छत्तीस सूक्ति त्रिवेणी १९. जह खलु मइलं वत्थं, सुज्झइ उदगाइएहिं दव्वेहिं । एवं भावुवहाणेण, सुज्झए कम्ममट्ठविहं ॥ --आचा० नि० २८२ २०. जह वा विसगंडूस, कोई घेत्तूण नाम तुण्हिक्को । अण्णेण अदीसंतो, किं नाम ततो न व मरेज्जा ! ___ --सूत्रकृतांग नियुक्ति, गाथा ५२ २१. धम्ममि जो दढमई, सो सूरो सत्तिओ य वीरो य । ण हु धम्मणिरुस्साहो, पुरिसो सूरो सुबलिओऽवि ॥ --सूत्र० नि० ६० २२. अहवा वि नाणदंसणचरित्तविणए तहेव अज्झप्पे । जे पवरा होंति मुणी, ते पवरा पुंडरीया उ ।। --सूत्र० नि० १५६ २३. अवि य ह भारियकम्मा, नियमा उक्कस्सनिरयठितिगामी। तेऽवि हु जिणोवदेसेण, तेणेव भवेण सिझंति ॥ --सूत्र० नि० १६० २४. धम्मो उ भावमंगलमेत्तो सिद्धि त्ति काऊणं ।। --दशवकालिक नियुक्ति, गाथा ४४ २५. हिंसाए पडिवक्खो होइ अहिंसा । ---दशव०नि० ४५ २६. सुहदुक्खसंपओगो, न विज्जई निच्चवायपक्खंमि । एगतुच्छेअंमि य, सुहदुक्ख विगप्पणमजुत्तं ।। -दशवै० नि० ६० २७. उक्कामयंति जीवं, धम्माओ तेण ते कामा।। -दशव०नि० १६४ २८. मिच्छत्तं वेयन्तो, जं अन्नाणी कहं परिकहेइ । लिंगत्थो व गिही वा, सा अकहा देसिया समए । तवसंजमगुणधारी, जं चरणत्था कहिंति सब्भावं । सव्वजगज्जीवहियं, सा उ कहा देसिया समए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001258
Book TitleSukti Triveni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1988
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Canon, & Agam
File Size3 MB
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