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सकलनकर्ता ने वेद, उपनिषद्, रामायण, महाभारत, प्रभृति ग्रंथों से संकलन किया है । जैन धाराओं में आचारांग सूत्र, सूत्रकृतांगसूत्र, स्थानांगसूत्र, भगवतीसूत्र, दशवकालिकसूत्र, उत्तराध्ययनसूत्र और आचार्य भद्रबाहु के तथा आचार्य कुन्दकुन्द के वचनों से तथा भाष्य साहित्य, चूणि साहित्य से सूक्तियों का संचयन किया है । बौद्ध धारा में सुत्तपिटक, दीर्घनिकाय, मज्झिमनिकाय, संयुक्तनिकाय, अंगुत्तरनिकाय, धम्मपद, उदान, इतिवृत्तक, सुत्तनिपात, थेरगाथा, जातक, विशुद्धिमग्गो प्रभृति ग्रंथों से संग्रह किया है।
देश की वर्तमान परिस्थिति में इस प्रकार की समन्वयात्मक दृष्टि का व्यापक प्रसार जनता के भीतर होना आवश्यक है। इससे चित्त का संकोच दूर हो जाता है। मैं आशा करता हूँ कि श्रद्धेय ग्रंथकार का महान् उद्देश्य पूर्ण होगा और देशव्यापी क्लेशप्रद भेदभाव के भीतर अभेददृष्टि स्वरूप अमृत का संचार होगा। इस प्रकार के ग्रंथों का जितना अधिक प्रचार हो, उतना ही देश का कल्याण होगा।
-गोपीनाथ कविराज पद्मविभूषण, महामहोपाध्याय
(वाराणसी)
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