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________________ संकट का बीजारोपण रानी अभया ने सुने कपिला के उद्गार, रोम रोम में गर्व की गूँज उठी झनकार | संकट के काले कुदिन आते हैं जिस बार, छा जाता है बुद्धि पर घोर घुप्प अँधकार । मन्द हास्य हँस प्रेम से बोली साहंकार, कपिला को देने लगी मीठी सी फटकार | “क्या कहूँ मैं कपिला ! तुझको, भ्रम में भूली फिरती है । रानी अभया को अपने मन में, तू कुछ न समझती है ॥ अखिल राष्ट्र में पूर्णतया, मेरा ही शासन चलता टल सकता है हुक्म भूप का, पर मेरा कब टलता चमत्कार देखेगी ? अच्छा, तुझे अभी दिखला दूँगी । सेठ सुदर्शन को निज पद-कमलों, का भ्रमर बना दूँगी ॥ जादू डाल रूप का निज, मन चाहा नाच मक्कारी सब भुला काठ का, उल्लू उसे Jain Education International अगर आज का प्रण मैं अपना, पूर्ण नहीं कर ३६ है है ॥ For Private & Personal Use Only नचाऊँगी | बनाऊँगी ॥ पाऊँगी । www.jainelibrary.org
SR No.001218
Book TitleDharmavir Sudarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size7 MB
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