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संकट का बीजारोपण
रानी अभया ने सुने कपिला के उद्गार, रोम रोम में गर्व की गूँज उठी झनकार | संकट के काले कुदिन आते हैं जिस बार, छा जाता है बुद्धि पर घोर घुप्प अँधकार । मन्द हास्य हँस प्रेम से बोली साहंकार, कपिला को देने लगी मीठी सी फटकार |
“क्या कहूँ मैं कपिला ! तुझको,
भ्रम में भूली फिरती है । रानी अभया को अपने मन में, तू कुछ न समझती
है ॥
अखिल राष्ट्र में पूर्णतया,
मेरा ही शासन चलता
टल सकता है हुक्म भूप का,
पर मेरा कब टलता
चमत्कार देखेगी ? अच्छा,
तुझे अभी दिखला दूँगी । सेठ सुदर्शन को निज पद-कमलों,
का भ्रमर
बना दूँगी ॥
जादू डाल रूप का निज,
मन चाहा
नाच
मक्कारी सब भुला काठ का,
उल्लू
उसे
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अगर आज का प्रण मैं अपना,
पूर्ण
नहीं
कर
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है
है ॥
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नचाऊँगी |
बनाऊँगी ॥
पाऊँगी ।
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