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जगती ज्योति अखंड नित, सदाचार की यत्र; यश, लक्ष्मी, सौभाग्य, सुख, रहते निश्चल तत्र !
मानव-भव का सार यही है,
सदाचार
का
पूर्णरूप से शुद्ध श्रेष्ठ, आदर्श जगत में बन
उपक्रम
वह मनुष्य क्या, सदाचार का,
नर चोले में राक्षस
पापाचार
तनिक न रस जिसको
सा,
अधमाधम जीवन
सदाचार है पतित पावनी,
गंगा
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चक्र
-
-
की निर्मल
की
दैत्य - दल - दलनी, सुदर्शन
पंडित ज्ञानी बन जाने का,
यही सार 'तोता रटन' अन्यथा निष्फल,
शास्त्र - पठन
अपनाना ।
सर्ग एक
जाना ॥
भाया ।
अपनाया ||
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बतलाया
धारा ।
है ।
कहलाया है ॥
धारा ॥
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