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पूर्णता के पथ पर
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पावन दर्शन श्री मुनिवर का,
नगर - लोक तब पाता था ।
नगर पाटलीपुत्र मनोहर,
एक बार आए मुनिवर । घूम रहे थे मंथर गति से,
भिक्षाशन लेते घर - घर ।। रंभा ने देखा तो अति ही,
चकित खड़ी-की-खड़ी रही । पूर्व दुःख की ज्वाला भड़की,
रहा द्वेष का पार नहीं ॥
पूर्व वैर-प्रतिशोधनार्थ,
वेश्या से बात बनाती है । सत्पथ-भ्रष्ट बनाने को,
__ अब फिर से जाल बिछाती है ।। बातों ही बातों में कुछ,
- ऐसा चित्र चलाया है । नारी वर्णन पर से वर्णन,
त्रियाचरित का आया है । "अखिल विश्व में त्रियाचरित,
का बल ही दुर्जय होता है । शीघ्र यथेच्छित त्रिभुवन-भर,
का पुरुषवर्ग वश होता है । पर ऐसे भी धार्मिक जन हैं,
जो न कभी वश में आते ।
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