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________________ धर्म-वीर सुदर्शन क्रमागत कुप्रथाओं का, प्रमों का, मूढ़ताओं का; अधः पाती निशां मानव-जगत में से मिटा देना । जगत में सत्य ही केवल, अमर अविचल अटल बल है; अतः निज शीष भगवन् सत्य के आगे झुका देना । सहस्राधिक प्रयत्नों से 'अमर' कर्तव्यच्युत जग में; नया जीवन, नया उत्साह, नया युग ला दिखा देना । श्री गुरुवर के साथ सुदर्शन, मुनिवर ने अब किया विहार । ज्ञानाभ्यासी बने श्रेष्ठ फिर, किया सत्य का विमल प्रचार ।। देश-देश में, नगर-नगर में, गाँव - गाँव में घूम फिरे । पा कर के सद्बोध आप से, भव्य अनेकानेक तिरे ॥ योग साधना हेतु एकदा, श्री गुरुवर से किया विचार । दृढ़ साहस का अवलंबन कर, एकल पडिमा की स्वीकार ॥ शून्य वनों में, शैल-गुहाओं में, __ अब निर्भय रहते थे । आत्म-ध्यान में मस्त, प्रकृति के नाना संकट सहते थे । मास-आदि अनशन व्रत का, जब कभी पारणा आता था । १४५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001218
Book TitleDharmavir Sudarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size7 MB
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