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अङ्गराष्ट्र का उत्थान
छत से रस्सी बाँध, लगा गल,
फाँसी निज हत्या
करली ॥
पश्चात्ताप किया था, फलतः,
देवयोनि में जन्म लिया । किन्तु कलंकारोपण ने,
अतिनिन्द्य व्यन्तरी रूप दिया । ठाठ - बाठ थे अभया के, .
मन - मोहन सुर - बाला जैसे । आज देखिए फाँसी पर,
- मृत देह झूलती है कैसे ? पापवाटिका कुछ ही दिन तक,
खूब फूलती - फलती है। कर्मोदय का हिम पड़ने पर,
___ क्षण - भर में ही जलती है ।
श्रेष्ठी जी के धाम से, लौटे श्री भूपाल; सोच रहे थे चित्त में, अभया का यों हाल ।
"अभया का अपराध सर्वथा,
भयंकर है । श्रेष्ठी को लांछित करने का,
किया. पाप प्रलयंकर है ॥ पातिव्रत की मूर्ति बनी थी,
मुझको भ्रम में फँसा लिया । पड़ा रहा व्यामोह-जाल में,
नहीं ज़रा भी ध्यान दिया ।।
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