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________________ धर्म-वीर सुदर्शन चित्त चमत्कृत हुआ मधुरतम, गूंज उठा स्वागत संगीत ॥ पधारो, स्वागत, प्राणाधार ! अद्भुत धर्म-महत्व दिखाया, शली स्वसिन प्रगटाया, दर्शनार्थ सुरपति चल आया, छोड़ कर देवालय दरबार ! पधारो, स्वागत, प्राणाधार ! अटल, अचल, दृढ अपने प्रण में, पैर न रक्खा पापाङ्गण में, गॅजी अधिकाधिक क्षण-क्षण में, सत्य की अति पावन जयकार ! पधारो, स्वागत, प्राणाधार ! आध्यात्मिक बल कैसा भारी, अन्तर में दृढ़ समता धारी, भौतिक बल ने हिम्मत हारी, देखकर स्तब्ध हुआ संसार! पधारो, स्वागत, प्राणाधार ! कैसा प्रेम-पयोनिधि उमड़ा, दूर हुआ सब रगड़ा-झगड़ा, सत्य पुण्य-पथ सबने पकड़ा, पाप का रहा नहीं कुविचार ! पधारो, स्वागत, प्राणाधार ! राष्ट्र - भाल उन्नत सगर्व है, मंत्र-मुग्ध जन-वृन्द सर्व है, आज प्रेम का परम पर्व है, हर्ष का कुछ भी वार न पार ! पधारो, स्वागत, प्राणाधार ! १२१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001218
Book TitleDharmavir Sudarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size7 MB
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