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________________ तप में कायोत्सर्ग का महत्त्व तप में कायोत्सर्ग का महत्त्व कायोत्सर्ग साधना तप का चरमोत्कर्ष है, अतः कायोत्सर्ग के महत्त्व को समझने के लिए तप के भेदों को जानना आवश्यक है। अनशन, उणोदरी आदि तप के बारह भेद कर्म-निर्जरा के क्रमिक विकास के द्योतक हैं। निर्जरा का आशय है कर्मों का निर्जरित होना-कर्मों का झड़ना, क्षय होना, बंधनमुक्त होना । अपने से भिन्न 'पर' से सम्बन्ध जुड़ना ही बँधना है, बंधन है। बंधन उससे होता है जिससे किसी भी प्रकार के सुख-भोग की आशा हो। जिससे सुख-भोग मिलता है, उसके प्रति राग होता है। किसी के प्रति राग होना भी उससे बँधना है। इसी प्रकार जिससे सुख-भोग में बाधा पड़ती है उसके प्रति द्वेष होता है। किसी के प्रति द्वेष होना भी उससे बँधना है। इस प्रकार राग-द्वेष-ये दो ही बंध के कारण हैं। जिनके प्रति राग या द्वेष नहीं है उनसे इस क्षण भी जीव बंधनरहित ही है। अतः राग-द्वेष से रहित होना ही बंधनमुक्त होना है। बंधनमुक्त होने की प्रक्रिया ही निर्जरा तत्त्व है। बंधनमुक्त होने के दो उपाय हैं। प्रथम उपाय है नये बंधन न बाँधना। इसे संवर कहा है। क्योंकि बंधन वहीं होता है, जहाँ राग (अटेचमेंट) है। विषय-भोग के सुखों में आसक्ति होना राग है। नये विषय-भोगों की कामना करना तथा कामनापूर्ति के सुख का भोग करना नवीन राग को जन्म देना है, यह ही नये बंधन को पैदा करना है। राग या विषय-सुखों के भोगों ही से समस्त विकार, दोष व पाप उत्पन्न होते हैं व टिकते हैं। अतः नवीन विषय-भोगों के राग की उत्पत्ति न करना, नये विकार, दोष व पाप न करना, नवीन बंधन को रोकना संवर है। पुराने बंधनों को तोड़ना, नष्ट करना, क्षय करना निर्जरा है। पुराने बंधनों को तोड़ने के लिए अंतःकरण (कार्मण या कारण शरीर) में, सत्ता में विद्यमान व उदयमान भोग-वासनाओं का क्षय करना है अर्थात् त्यागना है। त्याग के दो रूप हैं। प्रथम रूप है-नवीन वासनाओं, दोषों को उत्पन्न करने का त्याग करना, इसे संवर कहा है। इस त्याग से नवीन सम्बन्ध उत्पन्न होना अर्थात् नवीन बंध होना बंद हो जाता है। त्याग का दूसरा रूप है-उदयमान वासनाओं को, भोगेच्छाओं को 88 कायोत्सर्ग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001217
Book TitleKayotsarga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size7 MB
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