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________________ कायोत्सर्ग : कर्म-क्षय की साधना कायोत्सर्ग है सत्य का साक्षात्कार करना, जो जैसा है उसे ठीक वैसा ही अनुभव करना अर्थात् बिना किसी प्रकार की मिलावट, जोड़ व भ्रान्ति के वस्तुस्थिति का, सत्य का साक्षात्कार करना कायोत्सर्ग है। साधारणतः मानव जो कार्य करते हैं वह राग-रंजित, द्वेष-दूषित व मोह-विमूढ़ित (मूर्च्छित) होकर करते हैं। अतः वह शुद्ध साक्षात्कार न होकर राग-द्वेष-मोह से युक्त अशुद्ध साक्षात्कार होता है। इसी अशुद्ध साक्षात्कार का निवारण करने एवं सत्य का साक्षात्कार करने के लिये ध्यान व कायोत्सर्ग-साधना का विधान है। वस्तु या प्रकृति के स्वभाव को धर्म कहा जाता है जैसे आग का स्वभाव 'उष्णता' है। यह आग का धर्म है। स्वभाव का साक्षात्कार करना ही धर्म है। अथवा यह कहें कि वस्तु या प्रकृति का वास्तविक रूप ही धर्म है और इस धर्म का साक्षात्कार या अनुभव करना ही धर्म-ध्यान है। सत्य का साक्षात्कार बुद्धिजन्य कल्पनाओं, जल्पनाओं व मान्यताओं से नहीं होता है, अपितु अनुभव से होता है, सत्य पर चलने से होता है। जैसे-जैसे व्यक्ति जीवन में सत्य को स्थान देता जाता है, उस पर आचरण करता है, चरण बढ़ाता जाता है, वैसे-वैसे उसे सत्य की गहराई व सूक्ष्मता का अधिकाधिक साक्षात्कार होता जाता है। यह नियम है कि जो जितना सूक्ष्म होता है, वह उतना ही विभु व अधिक सक्षम होता है तथा अलौकिक, विलक्षण व अचिंत्य शक्तियों का भण्डार होता है। यही नियम या तथ्य ध्यान पर भी घटित होता है। ___ ध्यान में जिस सत्य का साक्षात्कार होता है उस पर चलने से प्रकृति के सूक्ष्म, सूक्ष्मतर व सूक्ष्मतम सत्यों (सिद्धान्तों, धर्मों व शक्तियों) का प्रत्यक्ष साक्षात्कार होने लगता है और अन्त में अपने ही में विद्यमान अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त सुख, अनन्त सामर्थ्य प्रकट हो जाता है। फिर वह सर्वथा बंधनमुक्त होकर सदा के लिये भव-भ्रमण व दुःख से छुटकारा पा जाता है। वस्तुतः ध्यान-साधना कोई रहस्य, जादू या चमत्कार नहीं है प्रत्युत सत्य के साक्षात्कार के क्रमिक विकास का सरल, ऋजु व सुगम मार्ग है। इसमें न तो कोई छिपाने की बात है और न कुछ जोड़ने की बात है, न भाषा-ज्ञान की कायोत्सर्ग : कर्म-क्षय की साधना 75 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001217
Book TitleKayotsarga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size7 MB
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