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________________ मोक्षोऽस्तु मास्तु यदि वा परमानन्दस्तु वेद्यते स खलु । यस्मिन्निखिल - सुखानि प्रतिभासन्ते न किञ्चिदिव ॥ मोक्ष हो या न हो, किन्तु ध्यान से प्राप्त होने वाला परमानन्द तो प्रत्यक्ष अनुभव में आता है । उस परमानन्द के सामने संसार के समस्त सुख नहीं के बराबर हैं। मधु न मधुरं नैता शोतास्त्विषस्तुहिनद्युतेरमृतममृतं नामैवास्याः फले तु मुधा सुधा । तदलममुना रसंम्भेण प्रसीद सखे! मनः, फलमविकलं त्वय्येवैतत् प्रसादमुपेयुषि ।। उन्मनीभाव से प्राप्त आनन्द के सामने मधु मधुर नहीं लगता, चन्द्रमा की कान्ति भी शीतल प्रतीत नहीं होती और अमृत केवल नाम मात्र का अमृत रह जाता है और सुधा तो वृथा ही है, अतः हे मन ! इस ओर दौड़-धूप करने का प्रयास मत कर। तू प्रसन्न हो । तेरे प्रसन्न होने पर ही तत्त्वज्ञान का सम्पूर्ण फल प्राप्त हो सकता है । सत्येतस्मिन्नरतिरतिदं गृह्य वस्तु दूरादप्यासन्नेऽप्यसति तु मनस्याप्यते नैव किञ्चित् । पुंसामित्यप्यवगतवतामुन्मनीभावहेता विच्छा बाढं न भवति कथं सद्गुरुपासनायाम् ॥ मन की विद्यमानता में अरति उत्पन्न करने वाली व्याघ्र आदि वस्तु और रति उत्पन्न करने वाली वनिता आदि वस्तु दूर होने पर भी मन के द्वारा ग्रहण की जाती है और मन की अविद्यमानता अर्थात् उन्मनीभाव उत्पन्न हो जाने पर समीप में रही हुई भी सुखद और दुःखद वस्तु भी ग्रहण नहीं की जाती । अर्थात् जब तक मन का व्यापार चालू है, तब तक मनुष्य दूरवर्ती वस्तुओं में से भी किसी को सुखदायक और किसी को दुःखदायक मानता है, किन्तु अमनस्क भाव प्राप्त होने पर समीपवर्ती वस्तु भी न सुखद प्रतीत होती है और न दुःखद ही प्रतीत होती है । Jain Education International कहने का तात्पर्य यह है कि उन्मनीभाव उत्पन्न हो जाने पर योगी की दृष्टि में यह विकल्प नहीं रह जाता कि अमुक वस्तु सुखदायी है और अमुक दुःखदायी । यह स्थिति अत्युत्तम और आनन्दमय है । जिन्होंने इस तथ्य को समझ लिया है, वे सद्गुरु की उपासना के लिए तत्पर रहते हैं । कायोत्सर्ग और अमनस्क साधना For Private & Personal Use Only 51 www.jainelibrary.org
SR No.001217
Book TitleKayotsarga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size7 MB
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