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________________ कायोत्सर्ग और अमनस्क साधना (कायोत्सर्ग मन को अमन बनाने की साधना) . जैन दर्शन में कायोत्सर्ग का विधान है-"तस्स उत्तरीकरणेणं, पायच्छित्तकरणेणं, विसोहीकरणेणं विसल्लीकरणेणं, पावाणं कम्माणं निग्घायणटाए ठामि काउस्सगं.....ताव कायं ठाणेणं, मोणेणं झाणेणं अप्पाणं वोसिरामि।" (आवश्यक सूत्र) अर्थात् उस (आत्मा) के उत्थान के लिए, प्रायश्चित्त करने के लिए, आत्म-विशुद्धि करने के लिए, शल्य, ममता व फलाकांक्षा से रहित होने के लिए, पापकर्मों का नाश करने के लिए कायोत्सर्ग करता हूँ। इसमें साधक को कायोत्सर्ग के ध्येय (फल व साध्य) के विषय में बताया गया है। इसके पश्चात् इसके करने की विधि बताई गई है जिसमें काया से स्थित रहना, वचन से मौन रहना और मन से ध्यानस्थ (स्थिर) रहना कहा है अर्थात् मन, वचन, काया से कोई प्रवृत्ति न करके ममत्व-अहंभाव या 'मैं' से रहित होना अर्थात् काया से असंग व अतीत होना कायोत्सर्ग है। जब तक 'मैं' हूँ–इस रूप में अपनाभास है, तब तक देहाध्यास है, देह से तादात्म्य है, क्योंकि मैं या अपनापन का भान होता ही तब है, जब चेतन अचेतन पदार्थ से जुड़ता है। प्रकारान्तर से कहें तो मैं या अहं का स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं है। मैं का सृजन होता है, जब शुद्ध चेतन तत्त्व अचेतन पदार्थ से सम्बन्ध स्थापित कर लेता है और मैं का भास तब होता है जब मन, वचन, तन से किसी प्रकार की प्रवृत्ति व प्रयत्न किया जाता है। प्रयत्न में अहंभाव-अहंकृति रहती है, जिससे मैं का भास होता है। अतः कायोत्सर्ग अर्थात् देहाभिमान से रहित होने के लिए अप्रयत्न होना आवश्यक है। परन्तु मन, वचन, काया की प्रवृत्ति न करने के लिए (इनसे अप्रयत्न होने के लिए) प्रयत्न करना होता है। यह अप्रयत्न होने के लिए किया गया प्रयत्न भी प्रयत्न ही है। अप्रयत्न होने के लिए किया गया यह प्रयत्न अतिसूक्ष्म व महान् प्रयत्न है। यह प्रयत्न, अप्रयत्न के रूप में प्रकट होता है। मन, वचन, काया के अप्रयत्न होने से, विश्रान्त होने से जो निर्विकल्प अवस्था होती है जिसमें (व्यक्त रूप में) अहंभाव, देहभाव नहीं रहता है। अतः कायोत्सर्ग और अमनस्क साधना 43 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001217
Book TitleKayotsarga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size7 MB
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