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________________ (श्रुतज्ञान) विषय-सुखों की क्षण-भंगुरता का ज्ञान कराती है, जिससे राग वैराग्य में और भोग योग (संयम) में रूपान्तरित हो जाता है व इन्द्रिय, मन, बुद्धि आदि के द्रष्टा में विषय-सुखों से, सब मान्यताओं से अतीत होने–इनके रागजनित प्रभावों से मुक्त होने की क्षमता आ जाती है। जिससे शरीर व शरीर से सम्बन्धित गण, उपधि आदि से व्युत्सर्ग हो जाता है। विषय सुखों के प्रभाव से मुक्त होने पर कषाय-विसर्जन (व्युत्सर्ग), कषाय-व्युत्सर्ग से कर्म-व्युत्सर्ग और कर्म-व्युत्सर्ग से संसार-व्युत्सर्ग स्वतः हो जाता है। आचारांग सूत्र की भाषा में कहें तो “जे कोहदंसी से माणदंसी, जे माणदंसी से मायदंसी, जे मायदंसी से लोभदंसी, जे लोभदंसी से पेज्जदंसी, जे पेज्जदंसी से दोसदंसी, जे दोसदंसी से मोहदंसी, जे मोहदंसी से गब्भदंसी, जे गम्भदंसी से जम्मदंसी, जे जम्मदंसी से मारदंसी, जे मारदंसी से नरयदंसी, जे नरयदंसी से तिरियदंसी, जे तिरियदंसी से दुक्खदंसी से मेहावी अभिणिवट्टिज्जा कोहं च माणं च मायं च लोभं च पेज्जं च दोसं च मोहं च गब्भं च मारं च नरयं च तिरियं च दुक्खं च। एवं पासगस्स दंसणं उवरय-सत्थस्स पलियंत करस्स आयाणं निसिद्धा सगडस्मि किमथि ओवाही पासगस्स न विज्जइ। णस्थि त्तिवेमि । (आचारांग, प्रथम श्रुतस्कन्ध, अध्ययन 3, उद्देशक 4 सूत्र) अर्थात् जो क्रोध को देखता है वह मान को देखता है, जो मान को देखता है वह माया को देखता है; इस प्रकार क्रमशः माया से लोभ को, लोभ से राग को, राग से द्वेष को, द्वेष से मोह को, मोह से गर्भ को, गर्भ से जन्म को, जन्म से मार को. मार से नरक को, नरक से तिर्यंच को, तिर्यंच से दःख को देखता है। इस प्रकार मेधावी क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, मोह, गर्भ, मार, नरक, तिर्यंच और दुःख का दर्शन करता है। यह शस्त्र-उपरत द्रष्टा का दर्शन है जो कर्म से उपरत करता है। आशय यह है कि व्युत्सर्ग की कोई प्रक्रिया नहीं होती, परन्तु ध्यान की पात्रता प्राप्त करने के लिए जैन दर्शन में अणुव्रत महाव्रत का पालन, पातञ्जल योग में यम, नियम, आसन, प्राणायाम आदि, बौद्ध दर्शन में शील और जैन दर्शन में विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय आदि सद्प्रवृत्तियों का आचरण अपेक्षित है। 42 कायोत्सर्ग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001217
Book TitleKayotsarga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size7 MB
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