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________________ सम्बन्ध संसार से है। इस प्रकार देह से इन्द्रियों का, इन्द्रियों का विषयों से, विषयों का वस्तुओं से और वस्तुओं का संसार से सम्बन्ध स्थापित होता है। अतः देह से सम्बन्ध स्थापित करना समस्त सम्बन्धों का एवं समस्त बन्धनों का कारण है। बन्धन-मुक्त होने के लिए सम्बन्ध-मुक्त होना आवश्यक है। सम्बन्धमुक्त होने के लिए देह से सम्बन्ध-विच्छेद करना आवश्यक है। देह (काया) से सम्बन्ध-विच्छेद होना कायोत्सर्ग है। काया का इन्द्रियों से अंग-अंगी सम्बन्ध है। अतः कायोत्सर्ग से इन्द्रियों और उनके विषयों से सम्बन्ध-विच्छेद हो जाता है जिससे विषयासक्ति (कषाय) और विषयों का सम्बन्ध-विच्छेद हो जाता है। विषयासक्ति से रहित होने पर कर्तृत्व व भोक्तृत्व भाव का अन्त हो जाता है। जिससे कर्म बँधना बन्द हो जाता है और कर्मोदय का प्रभाव बलहीन हो जाता है अर्थात् कर्म का व्युत्सर्ग हो जाता है। भोगासक्ति या कषाय का विच्छेद (क्षीण होना) कषाय-व्युत्सर्ग है। संसार से सम्बन्ध-विच्छेद होना संसार व्युत्सर्ग है। आशय यह है कि कायोत्सर्ग से, देहाभिमान रहित होने से शरीर, संसार, कषाय व कर्म का व्युत्सर्ग हो जाता है अर्थात् इनके बन्धनों से मुक्ति मिल जाती है। ___ कर्तृत्व भाव से की गई प्रवृत्ति श्रमयुक्त होती है। श्रम काया के आश्रय के बिना, पराधीन हुए बिना नहीं हो सकता। काया के आश्रित तथा पराधीन रहते हुए काया से असंग होना सम्भव नहीं है, काया से असंग हुए बिना कायोत्सर्ग नहीं होता है। कायोत्सर्ग के बिना अर्थात् काया से जुड़े रहते जन्म-मरण, रोग, शोक, अभाव, तनाव, हीनभाव, द्वन्द्व आदि दुःखों से मुक्ति कदापि सम्भव नहीं है। अतः समस्त श्रमसाध्य प्रयत्नों एवं क्रियाओं की प्रवृत्तियों से रहित होने पर कायोत्सर्ग होता है। कायोत्सर्ग ही निर्वाण है एवं सर्वदुःखों से मुक्त होना है। कायोत्सर्ग-व्युत्सर्ग कायोत्सर्ग को (उत्तराध्ययन सूत्र अ. 30, गाथा 36 में) आभ्यन्तर तप के छठे प्रकार व्युत्सर्ग में कहा है कि भिक्षु सोने, बैठने, खड़े रहने आदि शरीर से कोई प्रवृत्ति नहीं करता है उसे व्युत्सर्ग कहा जाता है। व्युत्सर्ग का अर्थ हैममत्व का त्याग करना, परे होना, असंग होना, अतीत होना, सम्बन्ध-विच्छेद करना । प्राणी का सबसे अधिक घनिष्ठ सम्बन्ध शरीर से होता है। उसके क्रियाकलाप, भोग-परिभोग शरीर के आश्रय से ही होते हैं। उसे शरीर का अस्तित्व अपना अस्तित्व प्रतीत होता है। देह के प्रति आत्म-बुद्धि (अपनापन) इतना दृढ़ हो जाता है कि 'मैं देह हूँ'-उसे ऐसा आभास होता है। देह में ऐसा अहंत्व व 26 कायोत्सर्ग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001217
Book TitleKayotsarga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size7 MB
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