SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 101
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कायोत्सर्ग से मुक्ति की प्राप्ति मानव मात्र का लक्ष्य, शान्ति, मुक्ति (स्वाधीनता), प्रीति (प्रसन्नता), अमरत्व एवं दुःखरहित स्थायी-शाश्वत सुख प्राप्त करना है। इस लक्ष्य की पूर्ति किसी वस्तु, व्यक्ति, परिस्थिति आदि से सम्भव नहीं है। कारण कि इनके साथ अशान्ति, पराधीनता-पराश्रय, नीरसता, विनाश, वियोग आदि के दुःख लगे ही रहते हैं, जो किसी भी मानव को स्वभाव से ही इष्ट नहीं हैं। लक्ष्य उसे कहते हैं जिसकी पूर्ति सम्भव हो। लक्ष्य की पूर्ति में ही मानव-जीवन की सार्थकता एवं सफलता है। इसलिए लक्ष्य की पूर्ति अनिवार्य है। मानव-जीवन का लक्ष्य स्थायी, शाश्वत सुख प्राप्त करना है। शरीर, इन्द्रिय, मन व संसार की समस्त वस्तुएँ नाशवान हैं। अतः जो स्वयं ही नाशवान हैं उनसे स्थायी-अविनाशी शाश्वत सुख की प्राप्ति कदापि सम्भव नहीं है। अतः इनसे शाश्वत सुख प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करना व्यर्थ है। यह ही नहीं, इन भोगों के सुख में पराधीनता, शक्तिहीनता, जड़ता, असमर्थता, अभाव, नीरसता, वियोग आदि अगणित दुःख लगे हुए हैं जो किसी भी मानव को इष्ट नहीं हैं। अतः इनसे सुखप्राप्ति का त्याग करने में किसी भी प्रकार का अहित नहीं है, प्रत्युत हित ही है। अतः शरीर, इन्द्रिय, मन, बुद्धि आदि से मिलने वाले सुख का त्याग करना मानव का परम पुरुषार्थ है। इन सुखों का त्याग करते ही पराधीनता, शक्तिहीनता, वियोग आदि के दुःखों का भी स्वतः अंत हो जाता है जो मानव-मात्र को इष्ट हैं। अतः इन के सुखों के त्याग में ही हित है। इन्द्रिय, शरीर, मन आदि के विषय-सुखों के त्यागते ही सभी दुःखों का भी अंत हो जाता है। सुख-दुःख से अतीत होते ही उस अलौकिक सुख, जिसे आनन्द कहते हैं, उसका अनुभव होता है। यह सुख या आनन्द पराश्रित एवं नश्वर पदार्थों पर आधारित नहीं होने से तथा स्वतः प्राप्त होने से स्वाधीन, अविनाशी व अनन्त होता है। इस प्रकार इन्द्रिय-विषय-सुख के त्यागने मात्र से ही मानव की माँग की पूर्ति हो जाती है। इसके लिए किसी प्रवृत्तिपरक सक्रिय विधेयात्मक साधना की आवश्यकता नहीं है। प्रवृत्तिपरक विधेयात्मक साधना 100 कायोत्सर्ग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001217
Book TitleKayotsarga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy