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________________ ध्यानशतक ___ जैन आगमों में प्रचलित आवश्यकनियुक्ति में प्रतिक्रमण नामक चतुर्थ आवश्यक में 105 प्राकृत गाथाओं में निबद्ध एक ध्यानशतक नाम से प्रसिद्ध 'ध्यानाध्ययन' मिलता है। यह ध्यानशतक विशेषावश्यक भाष्य के कर्ता जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण की रचना है।52 जैन दर्शन में ध्यान पर यही एक अद्वितीय अध्ययन है जो आवश्यकनियुक्ति से जुड़ा हुआ है। ध्यानशतक आवश्यक नियुक्ति पर हरिभद्र (आठवीं शती ईसवी) कृत टीका (विवृत्ति/ विवरण) के साथ ही उपलब्ध होता है। इससे पूर्व न तो स्वतन्त्र ग्रन्थ के रूप में और न ही आवश्यक चूर्णि (आवश्यकनियुक्ति पर उपलब्ध प्राचीन टीका छठीसातवीं शती ईसवी) के साथ मिलता है। लेकिन ऐसा लगता है कि ध्यानशतक की प्राचीन परम्परा का अंश आवश्यक चूर्णि में उपलब्ध है और इसी के आधार पर आचार्य जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने ध्यानशतक की रचना की हो। ध्यान के चार प्रकार का वर्णन आगमों में यत्र-तत्र उपलब्ध है किन्तु इस विषय पर मानो एक शोध ग्रन्थ के रूप में प्रथम बार हमें ध्यानशतक उपलब्ध होता है। ध्यान प्रक्रिया सामान्यत: प्राचीन भारतीय संस्कृति में प्रचलित रही है। इसके कई अंश उत्तरकालीन ब्राह्मण दर्शन (रामायण-महाभारत के बाद) में; बौद्ध दर्शन में एवं जैन दर्शन में उपलब्ध हैं। ब्राह्मण दर्शन के योगसूत्र, शैव दर्शन, हठयोग इत्यादि में ध्यान प्रक्रिया का विस्तार है। बौद्ध साहित्य में बुद्ध घोष के विसुद्धिमग्ग आदि में तथा जैन दर्शन में ध्यान प्रणाली के प्राचीन अंश आचारांग के लोकविचय अध्ययन, आचारांग के भावना अध्ययन तथा अनुप्रेक्षा में उपलब्ध है। और पुराने आगमों में प्रमुखतया आचाराङ्ग सूत्र, उत्तराध्ययन तथा दशवकालिक में जो मौखिक रूप से चली आ रही परम्परा रही है, उसके उल्लेख स्थानाङ्ग, समवायाङ्ग इत्यादि आगमों में निर्दिष्ट हैं। इसी प्रकार दिगम्बरों के ग्रन्थ मूलाचार (दूसरी शती ईसवी) और मूलाराधना (तीसरी-चौथी शती ईसवी) जैसे प्राचीन ग्रन्थों में भी ध्यान प्रक्रिया के अंश मिलते हैं। अर्वाचीन साहित्य को छोड़ दें तो प्राचीन भारतीय संस्कृति में ब्राह्मण, बौद्ध और जैन दर्शन में योग, समाधि और ध्यान का प्रवाह ओतप्रोत होकर चलता रहता था। इन तीनों के प्राचीन समय में अलग-अलग विचार प्रवाह थे, साम्प्रदायिक अथवा विरोधी प्रवाह नहीं। उत्तरकाल में जैसी साम्प्रदायिकता की प्रस्तावना 37 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001216
Book TitleDhyanashatak
Original Sutra AuthorJinbhadragani Kshamashraman
AuthorKanhaiyalal Lodha, Sushma Singhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages132
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Dhyan
File Size7 MB
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