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________________ प्रस्तावना ॥ जयन्तु वीतरागाः ॥ चूर्णिसहित नन्दीसूत्रके संशोधनके लिये मूलसूत्रकी आठ और चूर्णिकी चार, एवं सब मिलकर बारह प्रतियां सामने रक्खी गई हैं। इनमें से मूलसूत्रकी तीन और चूर्णीकी एक, ये चार ताडपत्रीय प्रतियाँ हैं। इन सबोंका परिचय इस प्रकार है जे० प्रति-यह प्रति जेसलमेरके किलेमें स्थित खरतरगच्छीय युगप्रधान आचार्य श्रोजिनभद्रसूरि ताडपत्रीय ज्ञानभंडारकी ताडपत्रीय प्रति है। यूची में इस प्रतिका क्रमाङ्क ७७ है। इसमें पत्र १ से २६ में नन्दीसूत्र मूल है और पत्र १ से २९७ में श्रीमलयगिरिमूरिकृत वृत्ति है । प्रतिकी लंबाई-चौडाई ३३॥ २॥ इंच है । प्रतिपत्रमें पत्रकी चौडाईके अनुसार चार या पांच पंक्तियां लिखी हैं। प्रति तीन विभागमें लिखी गई है। प्रति शुद्धतम है। पुष्पिकाके लेखानुसार इस प्रति का संशोधन खरतरगच्छीय आचार्य श्रीजिनभद्रसूरिने स्वयं किया है। अनेक स्थानपर आपने उपयोगी टिप्पनीयाँ भी की हैं, जो हमने हमारे मुद्रणमें तत्तत् स्थान पर दे दी हैं । प्रति की लिपि सुन्दरतम है । अन्तमें लेखककी पुप्पिका इस प्रकार है --- स्वस्ति । संवत् १४८८ वर्षे श्रीसत्यपुरे पौष वदि १० दिने श्रीपार्श्वदेवजन्मकल्याणके श्रीखरतरगणाधिपैः श्रीजिनराजरिपट्टालंकारसारैः प्रभुश्रीमजिनभद्रमूरिसूर्यावतारैः श्रीनन्दिसिद्धान्तपुस्तकं स्वहस्तेन शोधितं पाठितं च । तच श्रीश्रमणसङ्घन वाच्यमानं चिरं नन्दतु ।। सामान्यतया श्रीजिनभद्रमूरिके उपदेशसे लिखाई गई प्रतियाँ स्तम्भतीर्थ(खंभात)निवासी खरतरगच्छीय श्रावक परीक्षित धरणाशाह या श्रीमालिज्ञातीय (१) बलिराज-उदयराजकी पाई गई हैं । किन्तु इस प्रतिमें इन तीनों मेंसे किसीके नामका उल्लेख नहीं है। यहां यह भी स्पष्ट होता है कि अपने विहारगत क्षेत्रोंमें भी आचार्य श्रोजिनभदमूरिको अन्य मुख्य कार्योंके साथ साथ पुस्तकलेखन-संशोधन-अध्यापनादि कार्य भी था । . सं० प्रति—यह प्रति पाटन-संबवीपाडाके लघुपोशालिक ताडपत्रीय जैन ज्ञानभंडारकी ताडपत्रीय प्रति है। इसके पत्र ८२ हैं। प्रतिपत्रमें तीन या चार पंक्ति लीखी हैं । प्रतिपंक्तिमें ४० से ४३ अक्षर लिखे हैं। प्रति दो विभागमें लिखी है। इसकी लंबाई-चौडाई १४४ १।।। इंचकी है। प्रतिको लिपि सामान्यतया अच्छी है। अन्तमें लेखक की पुष्पिका नहीं है। इसके अन्तमें अनुज्ञानन्दी नहीं है। खं० प्रति-यह प्रति खंभातके श्रीशान्तिनाथताडपत्रीय जनज्ञानभंडारकी ताडपत्रीय प्रति है। प्राच्यविद्यामंदिरबडौदासे प्रकाशित इस भंडारकी सूची में इसका क्रमाङ्क ३८ है । इसमें पत्र १ से १८ में नन्दीसूत्र मूल है, पत्र १८-१९ में अनुज्ञानन्दी है और पुनः पत्र १ से २४७ में नन्दीसूत्रकी मलयगिरीया वृत्ति है। प्रतिकी लंबाई-चौडाई ३१॥४२॥ इंच है। ताइपत्रकी चौडाईके अनुसार तीनसे पाँच पंक्तियाँ लिखी हुई हैं । प्रतिपंक्ति में १०१ से ११९ अक्षर लिखे पाये जाते हैं। प्रति शुद्धप्राय है और लिपि सुन्दरतम है । प्रति तीन विभागमें लीखी गई है । अन्तमें इस प्रकारकी पुष्पिका है स० १२९२ बर्षे वैशाख शुदि १३ अधेह वीजापुरे श्रायकपौषधशालायां श्रीदेवभद्रगणि पं० मलयकीर्ति पं० अजितप्रभगणिप्रभृतीनां व्याख्या ततः संसारासारतां विचिन्त्य सर्वज्ञोक्तं शास्त्रं प्रमाणमिति मनसि ज्ञात्वा सा० धणपालसुन सा• रत्नपाल ४० गजमुत ठ० विजयपाल श्रे० देल्हासुत श्रे० वील्हण महं० जिणदेव महं• बीकलजुत ठ० आसपाल श्रे० साल्हा ठ० सहजासुत ठ० अरसीह सा० राहडसुत सा० लाहडप्रभृतिसमस्तश्रावकैः मोक्षफलप्रार्थकैः समस्तचतुर्विधसंबस्य पठनार्थ वाचनार्थ च समर्पणाय लिम्वापितम्॥छ।। नन्हीं विजापुरके श्रावकोंकी लिखाई हुई अन्य कई नाडपत्रीय प्रतियां खंभातके इस भाण्डागारमें विद्यमान हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001150
Book TitleAgam 44 Chulika 01 Nandi Sutra
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorJindasgani Mahattar, Punyavijay
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2004
Total Pages142
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, G000, G010, & agam_nandisutra
File Size22 MB
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