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महानिसीह-सुय-खंधं
जो गिण्हइ गुरु-वयणं भण्णंतं भावओ पसण्ण-मणो। ओसहमिव पिज्जतं, तं तस्स सुहावहं होइ ॥१२॥ पुण्णेहिं चोइया पुर-कएहिं सिरि-भायणा भविय सत्ता । गुरुमागमेसि-भद्दा देवयमिव पज्जुवासंति ॥१३॥ बहु-सोक्ख-सय-सहस्साण दायगा मोयगा दुह-सयाणं । आयरिया फुडमेयं केसि पएसीए' ते हेऊ ॥१४|| नरय-गइ-गमण-परिहत्थए.कए तह पएसिणा रना। अमर-विमाणं पत्तं तं आयरियप्पभावेणं ॥१५॥ धम्ममइएहिं अइसुमहुरेहिं कारण-गुणोवणीएहिं। पल्हायंतो हिययं सीसं चोएज्ज आयरिओ॥१६॥ एत्थं चायरियाणं पणपन्नं होंति कोडि-लक्खाओ। कोडि-सहस्से कोडि-सए य तह एत्तिए चेव ।।१७।। एतेसिं मज्झाओ एगे निव्वडइ गुण-गणाइन्ने। सव्वुत्तम-भंगेणं तित्थयरस्साणुसरिस-गुरू ॥१८|| से चेय गोयमा ! देयवयणा' सूरित्थ,णायसेसाई। तं तह आराहेज्जा जह तित्थयरे चउव्वीसं ॥१९॥ सव्वमवी एत्थ पए दुवालसंग सुयं भाणियव्वं । भवइ तहा वि मिणमो समाससारं परं भण्णे ॥२०॥ तं जहामुणिणो संघं तित्थं गण-पवयण-मोक्ख-मग्ग-एगट्ठा । दसण-नाण-चरित्ते घोरुग्ग-तवं चेव गच्छ-णामे य ॥२१|| पयलंति जत्थ धग धगधगस्स गुरुणा वि चोयए सीसे । राग-द्दोसेणं अह अणुसएण तं गोयम! ण गच्छं ।।२२।। गच्छं महाणभागं तत्थ वसंताण निज्जरा विउला। सारण-वारण-चोयणमादीहिं ण दोस-पडिवत्ती ॥२३।। गुरुणो छंदणुवत्ते सुविणीए जिय-परीसहे धीरे । ण वि थद्धे ण वि लुद्धे न वि गारविए न वि गहसीले ॥२४॥ खंते दंते मुत्ते गुत्ते वेरग्ग-मग्गमल्लीणे। दस-विह-सामायारी-आवस्सग-संजमुज्जुत्ते ।।२५।। खर-फरुस-कक्कसानिट्ठ-दुट्ठ-निट्ठर-गिराए सयहुत्तं । निब्भच्छण-निद्धाडणमाईहिं न जे पओसंति ॥२६।। जे य ण अकित्ति-जणए णाजस-जणए णऽकज्जकारी य । न य पवयण-उड्डाहकरे कंठग्गय-पाण-सेसे वि ॥२७॥ सज्झाय-झाण-निरए घोरतव-चरण-सोसिय-सरीरे । गय-कोह-माण-कइयव-दूरुज्झिय-राग-दोसे य ॥२८॥
१ पयसीय ते ख. । २ पडहत्थ । ३ देवव ला, देवय वय खं. । ४ धम धम धमस्स जे./ धम धमो धमस्स (टिप्पण) ला.। ५ द्धारण।
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