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महानिसीह - सुखंधं अ
विणओवयारकुसले सोलसविह- वयण - भासणे कुसले । निरवज्ज-वयण- भणिरे ण य बहु- भणिरे ण पुणऽभणिरे ॥२९॥ गुरुणा कज्जमकज्जे खर-कक्कस - फरुस- निडुरमणिङ्कं । भणिरे' 'तह त्ति' इत्थं भांति सीसे तयं गच्छं ||३०|| दूरुज्झिय - पत्ताइसु ममत्त निप्पहे सरीरे वि ॥ जाया-मायाहारे बायालीसेसणा कुसले ||३१|| तं पण रूव-रसत्थं भुजंताणं न चेव दप्पत्थं । अक्खोवंग - निमित्तं संजम - जोगाण वहणत्थं ॥ ३२ ॥ वेयण - वेयावच्चे इरियट्ठाए य संजमट्ठाए । तह पाण-वत्तियाए छटुं पुण धम्म - चिंताए ॥३३॥ अपुव्व-नाण-गह थिर-परिचिय-धारणेक्कमुज्जुत्ते । सुत्तं अत्थं उभयं जाणंति अणुट्ठयंति सया ||३४|| अट्ठट्ठ-नाण- दंसण चारित्तायार नव- चउक्कम्मि । अहि-बल-विरिए अगिलाए धणियमाउत्ते ||३५|| गुरुणा खर-फरूसाणिट्ठ-दुट्ठ - निठुर - गिराए सयहुतं । भरे णो पड़सूरि ति जत्थ सीसे तयं गच्छं ||३६|| तवसा अचिंत - उप्पण्ण-लद्धि-साइसय-रिद्धि-कलिए वि । जत्थ न हीलेंति गुरुं सीसे, तं गोयमा ! गच्छं ॥३७॥ तेसट्ठि-ति-सय-पावाउयाण विजया विढत्त - जस-पुंजे ।
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नीति गुरुं स तं गोयमा ! गच्छं ||३८|| जत्थाखलियममिलियं अव्वाइद्धं पयक्खर - विसुद्धं । विणओवहाण पुव्वं दुवालसंगं पि सुय-नाणं ॥ ३९॥ गुरु-चलण- भत्ति-भर- निब्भरेक्क परिओस-लद्धमालावे । अज्झति सीसा गग्गमणा स गोयमा ! गच्छे ||४०|| स- गिलाण - सेह - बालाउलस्स गच्छस्स दसविहं विहिणा । कीरइ वेयावच्चं गुरु- आणत्तीए तं गच्छं ॥४१॥ दस-विह-सामायारी जत्थट्ठिए भव्व - सत्त - संघाए । सिझंतिय बुज्झति ण य खंडिज्जइ तयं गच्छे ॥४२॥ इच्छा मिच्छा तहक्कारो आवस्सिया य निसीहिया । आउंछणा' य पडिपुच्छा छंदणा य निमंतणा ॥ ४३ ॥ उवसंपया य काले सामायारी भवे दस - विहाओ ||४४|| जत्थ य जिट्ठ-कणिट्ठो जाणिज्जइ जेट्ठ- विनय - बहुमाणं । दिवसेण वि जो जेट्ठो णो हीलिज्जइ तयं गच्छं ॥ ४५ ॥ जत्थं य अज्जा कप्पं पाण- च्चाए वि रोरव - दुब्भिक्खे । परिभुज्जइ सहसा गोयम ! गच्छं तयं भणियं ॥ ४६ ॥
१ णिए खं. । २ इच्छं सं. । ३ अब्भोवंग जे. । ४ तं गच्छं खं । ५ आपुंछ ला. ।
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