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महानिसीह - सुय - खंध
जह जाय - कम्म - विणिओग - कारियाओ दिसा' कुमारीओ । सव्वं निय कत्तव्वं निव्वत्तंती, जहेव भत्तीए ॥८७॥ बत्तीस - सुर- वरदा गरुय - पमोएण सव्व - रिद्धीए । रोमंच-कंचु- पुलइय-भत्तिभर - मोइय' - सगत्ते ॥८८॥ मण्णते सकयत्थं 'जम्मं अम्हाण मेरुगिरि - सिहरे । होही खणं' अप्फालिय- सूसर - गंभीर - दुंदुहि - णिग्घोसा ॥ ८९ ॥ जय - सद्द-मुहल-मंगल- कयंजली जह य खीर- सलिलेणं ॥ बहु-सुरहि-गंधवासिय-कंचण - मणि - तुंग' -कलसेहिं ॥ ९० ॥ जम्माहिसेय-महिमं करेंति, जह जिणवरो गिरि चाले || जह इंदं वायरणं भयवं वायरइ अट्ठ - वरिसो वि ॥ ९१ ॥ जह गमइ कुमारत्तं, परिणे बोहिंति जह व लोगंतिया देवा ॥९२॥ जह-वय-निक्खमण - महं करेंति सव्वे सुरीसरा मुइया ।
जह अहियासे घोरे परीसहे दिव्व - माणुस - तिरिच्छे ॥९३॥
जह घण घाइ - चउक्कं कम्मं डहइ घोर तव ज्झाण- जोग्ग- अग्गीए । लोगाऽलोग- पयासं उप्पा जधव' केवलन्नाणं ॥९४॥
केवल-महिमं पुणरवि काऊणं जह सुरीसराईया । पुच्छंति संस धम्म - णाय तव चरणमाईए ॥ ९५ ॥ जह व कइ जिनिंदो सुर-कय- सीहासणोवविट्ठो य । [.] ॥ ९६ ॥ तं चउविह- देव - निकाय - निम्मियं जह व वर - समवसरणं ।
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तुरियं करेंति देवा, जं रिद्धीए जगं तुलइ ॥९७॥ जत्थ समोसरिओ सो भुवणेक्क' - गुरू महायसो अरहा । अट्ठमह- पाडिहेर - सुचिंधियं वहइ तित्थयं नामं ॥ ९८ ॥ जह निद्दल असेस मिच्छत्तं चिक्कणं पि भव्वाणं । पडिबोहिऊण मग्गे ठवेइ, जह गणहरा दिक्खं ॥ ९९ ॥ गिण्हंति, महा-मइणो सुत्तं गंथंति, जह व य जिनिंदो । भासे कसिणं अत्थं अनंत-गम- पज्जवेहिं तु ॥ १००॥ जह सिज्झइ जग-नाहो महिमं नेव्वाण-नामियं, जहं य । सव्वे वि सुर-वरिंदा असंभवे तह वि मुच्चति ॥ १०१ ॥ सोगत्ता पगलंतंसु-धोय-गंडयल - सरसइ - पवाहं ।
विलास' हा सामि ! कया अणाह' ! त्ति ॥ १०२ ॥ जह सुरहि-गंध-गब्भिण - महंत गोसीस चंदण - दुमाणं । कट्ठेहिं विही- पुव्वं सक्कारं सुरवरा सव्वे ॥ १०३ ॥ काऊ सोगत्तासु दस - दिसि - वहे " पलोयंता । जह खीर - सागरे जिण वराण अट्ठी पक्खालिऊणं च ॥ १०४ ॥
१ दिसिकु आ. सु. २ रमाइय सगत्ता सा रवं । ३ ग ( रयण) क. आ. ४ सुराऽसुरा आ. सु. ला. । ५ जहव ला. सु. । ६ सुरी-सुरा ला; सुरासुरा आ. सु. । ७म्म णीइ तव आ. । ८ भुयर्णे रवं । ९ मोच्वंति आ. सु खं./ मोएंति ला । १० सिपहे आ. सुखं. ला. ।
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