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________________ ठाणंगसुत्ते पंचमे अज्झयणे पंचट्ठाणे [सू० ४४४अहवा पंच मुंडा पन्नता, तंजहा–कोहमुंडे माणमुंडे मायामुंडे लोभमुंडे सिरमुंडे। ४४४. अहेलोगे णं पंच बादरा पन्नता, तंजहा-पुढविकाइया, आउ[काइया], वाउ[काइया], वणस्सतिकाइया, ओराला तसा पाणा । उड़लोगे णं पंच बादरा एते चेव । तिरियलोगे णं पंच बादरा पन्नत्ता, तंजहा—एगिदिया जाव पंचिंदिया। पंचविधा बादरतेउकाइया पन्नता, तंजहा—इंगाले जाला मुम्मुरे अच्ची अलाते। पंचविधा बादरवाउकाइया पन्नत्ता, तंजहा—पीईणवाते पडीणवाते दाहिण१० वाते उदीणवाते "विदिसंवाते। पंचविधा अचिता वाउकोइया पन्नत्ता, तंजहा-अकंते धंते पीलिते सरीराणुगते संमुच्छिमे। ४४५. पंच "नियंठा पन्नता, तंजहा-पुलाते बउसे कुसीले "णियंठे सिणाते। १५ पुलाते पंचविहे पन्नते, तंजहा—गाणपुलाते, दंसणपुलाते, चरित्तपुलाते, लिंगपुलाते, अहासुहुमपुलाते नामं पंचमे।। बउसे पंचविधे पन्नत्ते, तंजहा–आभोगब उसे, अणाभोगबउसे, संवुडबउसे, असंवुडबउसे, अहासुहुमब उसे नामं पंचमे। कुसीले पंचविधे पन्नत्ते, तंजहा—णाणकुसीले, दंसणकुसीले, चरित्तकुसीले, २० लिंगकुसीले, अहासुहुमकुसीले नामं पंचमे । १. मायमुंडे क. पा० ला०॥ २. स्सतिकातिता पा० ला०॥ °फतिकाइया जे० ॥ ३. "ओराल(ला-B)तस त्ति त्रसत्वं तेजोवायुष्वपि प्रसिद्धम् , अतस्तत्प्रतिषेधेन द्वीन्द्रियादिप्रतिपत्यर्थमोरालग्रहणम् , ओरालाः स्थूला एकेन्द्रियापेक्षयेति"-अटी०॥४. प्रतिषु पाठाःबादरा एते (एवं-ला ४) चेव पा० ला०। बादरा ते चेव क० जे०। बादरा पं० तं० एवं तं चेव मु०॥ ५. दिता जे० पा०॥ ६. 'दिता क. जे० विना॥ ७. बादरा तेउका क०॥ ८. बायरा क०॥ ९. कातिता पा०॥१०. पायीण° पा० ला०॥११. विदिसिवाते जे०। विदिलवाते ला० मु०॥ १२. °कातिता पा०। काइता जे०॥ १३. निग्गंथा मु०। “पंच नियंठेत्यादि सूत्रषट्कम्"-अटी०॥ १४. णिग्गंथे मु०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001147
Book TitleThanangsuttam and Samvayangsuttam Part 3 Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri, Jambuvijay
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1985
Total Pages886
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, agam_sthanang, & agam_samvayang
File Size15 MB
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