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________________ ५४ प्रमाणप्रमेयकलिका में जाकर आश्रय लेना पड़ा था। परन्तु इसमें किसी भी विद्वान्के समयका उल्लेख न होनेसे उसपरसे इन नरेन्द्रसेनके समयका निर्धारण करना बड़ा कठिन है। पर हाँ, आगे हम 'रत्नत्रयपूजा' के कर्ता नरेन्द्रसेनका उल्लेख करेंगे, उसपरसे इनके समयपर कुछ प्रकाश पड़ता है। ये पद्मसेन-शिष्य नरेन्द्रसेन ऊपर चचित हुए प्रथम और द्वितीय नम्बरके जिनसेन-अनुज नरेन्द्रसेन तथा तीसरे नम्बरके गुणसेन-शिष्य नरेन्द्रसेनसे स्पष्टतः भिन्न और उनके उत्तरकालीन हैं। ५. पाँचवें नरेन्द्रसेन वे हैं, जिनका उल्लेख 'वीतरागस्तोत्र' में उसके कर्ता द्वारा हुआ है। इस स्तोत्रमें पद्मसेनका भी उल्लेख है और ये दोनों विद्वान् स्तोत्रकर्ताके द्वारा गुरुरूपसे स्मृत हुए जान पड़ते हैं । श्रद्धेय पण्डित जुगलकिशोरजी मुख्तारने इस स्तोत्रके आठवें पद्ममें आये हुए 'कल्याणकीर्ति-रचिताऽऽलय-कल्पवृक्षम् ' पदपरसे उसे कल्याणकीर्तिकी रचना अनुमानित किया है। स्तोत्रमें उल्लिखित ये पद्मसेन और नरेन्द्रसेन उपर्युक्त 'लाडवागडगच्छ' की पट्टावलीमें गुरु-शिष्यके रूपमें वर्णित पद्मसेन और नरेन्द्रसेन ही मालूम होते हैं। यदि यह सम्भावना ठीक हो तो चौथे और पाँचवें नम्बरके नरेन्द्रसेन एक ही हैं-पृथक् नहीं हैं । ६. छठे नरेन्द्रसेन 'रत्नत्रयपूजा' (संस्कृत ) के कर्ता है, जिन्होंने इसी पूजाके पुष्पिका-वाक्योंमें 'श्रीलाडवागडीयपण्डिताचार्यनरेन्द्रसेन'के रूपमें अपना उल्लेख किया है। इसका एक पुष्पिका-वाक्य यह है : १. इस गच्छके बारेमें खोज होना चाहिए। २. 'श्रीजैनसूरि-विनत-क्रम-पद्मसेनं हेला-विनिर्दलित-मोह-नरेन्द्रसेनम्' । --अनेकान्त वर्ष ८, किरण ६-७, पृष्ठ २३३ ।। ३. देखिए, वही अनेकान्त वर्ष ८, किरण ६-७, पृष्ठ २३३ । ४. देखिए, भ० संप्र० पृष्ट २५३, लेखाङ्क ६३३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001146
Book TitlePramanprameykalika
Original Sutra AuthorNarendrasen Maharaj
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages160
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size7 MB
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