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प्रस्तावना
प्रत्ययों ( कारणों ) से उत्पन्न होते हैं। वे प्रत्यय ये हैं : १. समनन्तर प्रत्यय, २. आधिपत्य प्रत्यय, ३. आलम्बन प्रत्यय और ४. सहकारि । प्रत्यय । पूर्व ज्ञान उत्तर ज्ञानकी उत्पत्तिमें कारण होता है, इसलिए वह समनन्तर प्रत्यय कहलाता है। चक्षुरादिक इन्द्रियाँ आधिपत्य प्रत्यय कही जाती हैं । अर्थ ( विषय ) आलम्बन प्रत्यय कहा जाता है। और आलोक आदि सहकारि प्रत्यय हैं। इस तरह बौद्धोंने इन्द्रियोंके अतिरिक्त अर्थ और आलोकको भी ज्ञानके प्रति कारण माना है। अर्थकी कारणतापर तो यहाँ तक जोर दिया गया है कि ज्ञान यदि अर्थसे उत्पन्न न हो तो वह उसे विषय ( जान ) भी नहीं कर सकता।
बौद्धोंके इस मन्तव्यपर जैन ताकिकोंने पर्याप्त विचार किया है और कहा है कि अर्थ तथा आलोकका ज्ञानके साथ अन्वय-व्यतिरेक न होनेसे वे ज्ञानके कारण नहीं हैं। अर्थके रहनेपर भी विपरीत ज्ञान या ज्ञानाभाव देखा जाता है और अर्थाभावमें केशोण्डुकादि ज्ञान हो जाता है । इसी प्रकार आलोक के रहते हुए उलूकादि नक्तञ्चरोंको ज्ञान नहीं होता तथा उसके अभावमें उन्हें ज्ञान होता हुआ देखा जाता है। अतः न अर्थ ज्ञानका कारण है और न आलोक । किन्तु इन्द्रिय और मन ये दोनों व्यस्त अथवा समस्त रूपमें आवरणक्षयोपशम (योग्यता) की अपेक्षा लेकर ज्ञानमें कारण हैं। नरेन्द्रसेनने भी इन्द्रिय तथा मनको ही ज्ञानका अनिवार्य कारण बतलाया है और अर्थ तथा आलोकको ज्ञानका अनिवार्य कारण न होनेका प्रतिपादन किया है । १. 'चत्वारः प्रत्यया हेतु'श्चालम्बनमनन्तरम् ।। तथैवाधिपतेयं च प्रत्ययो नास्ति पञ्चमः ॥'
-माध्यमिकका. १-२ । तथा देखिए, अभिधर्मकोश परि० २, श्लो० ६१-६४ । २. 'नाकारणं विषयः' इति । ३. लघीयस्त्रय का० ५७, ५८ तथा उसकी वृत्ति ।
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