SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना कि वह व्यापार नित्य है या अनित्य ? नित्य तो उसे माना नहीं जा सकता; क्योंकि वह ज्ञातासे उसी तरह उत्पन्न होता है जिस तरह घट मिट्टीसे होता है। यदि उसे अनित्य कहा जाय तो वह भी ठीक नहीं है, क्योंकि उसका कोई उत्पादक कारण नहीं है । आत्माको उसका उत्पादक कारण मानना सम्भव नहीं है, कारण वह नित्य है और नित्यमें अर्थक्रिया बनती नहीं । स्पष्ट है कि अर्थक्रिया क्रमशः या युगपत् होती है और क्रम तथा यौगपद्य नित्यमें बनते नहीं । अतः वे दोनों नित्यसे निवृत्त होते हुए अपनी व्याप्यभूत अर्थक्रियाको भी निवृत्त कर लेते हैं । वह अर्थक्रिया भी अपने व्याप्य सत्त्वको निवत्त कर देती है। कौन नहीं जानता कि व्यापककी निवृत्तिसे व्याप्यको भो निवृत्ति हो जाती है। इस तरह नित्यमें सत्त्वके न रहनेपर वह खरविषाणसदृश है । अतः ज्ञाताका व्यापार न नित्य सिद्ध होता है और न अनित्य । इसी तरह यह भी पूछा जा सकता है कि वह चिद्रूप है या अचिद्रूप ? यदि चिद्रूप है तो वह स्वसंवेदी है या अस्वसंवेदी ? प्रथम पक्षमें अपसिद्धान्त है और द्वितीय पक्ष अयुक्त है, क्योंकि कोई भी चिद्रूप अस्वसंवेदी नहीं हो सकता। यदि उसे अचिद्रूप कहा जाय तो उससे अर्थप्रकाशन नहीं हो सकता। निष्कर्ष यह कि व्याप्त-आत्मा और व्याप्य-अर्थके सम्बन्धका नाम व्यापार है । यतः व्याप्य-अर्थ जड है, अतः उसका सम्बन्ध भी जड है और जड ( अज्ञान ) से अज्ञाननिवृत्तिरूप प्रमा नहीं हो सकती। अज्ञान १. 'अथवा, ज्ञानक्रियाद्वारको यः कर्तृभूतस्यात्मनः कर्मभूतस्य चार्थस्य परस्परसम्बन्धी व्याप्तृ-व्याप्यत्वलक्षणः स मानसप्रत्यक्षावगतः विज्ञानं कल्पयति ।'-शास्त्रदी० पृ. २०२ । 'तेन जन्मैव विषये बुन्द्वेापार इष्यते । तदेव च प्रमारूपं तद्वती कारणं च धीः ।। व्यापारो न यदा तेषां तदा नोत्पद्यते फलम् ।' -मी० श्लो० पृ. १५२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001146
Book TitlePramanprameykalika
Original Sutra AuthorNarendrasen Maharaj
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages160
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy