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प्रमाणप्रमेयकलिका
मान्य हो। वह केवल साम्प्रदायिक दृष्टिसे कल्पित हुआ है। प्राचीन दर्शन-ग्रन्थोंमें वह दृष्टिगोचर नहीं होता। श्रौत और श्रौतेतर दर्शन : ____ भारतीय दर्शनोंके विभागपर विचार करते हुए हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि भारतीय दर्शनोंकी दो श्रेणियाँ हैं : एक श्रौत दर्शन और दूसरी श्रौतेतर दर्शन । जिसमें श्रुतिको प्रधान एवं प्रमाण मानकर तत्त्व प्रतिपादित हैं वह श्रौतदर्शन श्रेणी है। दूसरी श्रौतेतरदर्शन श्रेणी वह है जिसमें विशिष्ट व्यक्तिके अनुभव तथा तर्कको प्रधान एवं प्रमाण मानकर तत्त्वोंका विवेचन है। प्रथम श्रेणी में श्रतिके आधारसे प्रतिष्ठित सांख्य, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा और वेदान्त दर्शन सम्मिलित हैं और द्वितीय श्रेणीमें जैन, बौद्ध और चार्वाक दर्शत गभित हैं। इन दोनों श्रेणियोंको क्रमशः वैदिक दर्शन और अवैदिक दर्शनके नामसे भी उल्लेखित किया जा सकता है। इस विभाजनमें उपर्युक्त कोई आपत्ति नहीं है और न किसी दर्शनके प्रति संकुचितता या असम्मान ही प्रकट होता है । भारतीय दर्शनोंमें परस्पर भूयःसाम्य :
भारतीय दर्शन अनेक भेदोंमें विभक्त भले ही हों, किन्तु चार्वाक और शून्यवादी दर्शनोंको छोड़कर अन्य सभी दर्शनोंका आत्मवादमें विवाद नहीं है । निरात्मवादी बौद्धोंमें भी योगाचारादि सम्प्रदायमें क्षणिक-विज्ञानसन्तानको आत्मरूपसे स्वीकार किया है और उसके आलय-विज्ञान तथा प्रवृत्ति-विज्ञान ये दो भेद भी माने गये हैं । एवं अविद्या-वासनाके विनाश होनेपर दीप-निर्वाणकी तरह आत्म-निर्वाण-निरानव-चित्तसन्ततिका उत्पादरूप मोक्ष भी माना है। भारतीय दर्शन जिस मूल-भित्तिपर खड़ा है वह यही आत्मवाद है। यह आत्मवाद भारतीय दर्शनका प्राणभूत है । आत्माके पुण्यापुण्यकर्म, उसका आवागमन, बन्ध, कर्मवशात् नानायोनि, मोक्ष, तत्साधन तत्त्वज्ञानादि सिद्धान्तोंमें भी भारतीय दर्शनोंका परस्पर
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