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________________ 21 विक्रमनी प्राय: चौदमी शताब्दीमां कोई श्वेतांबर जैन विद्वाने तेमना समयमा उपलब्ध जैन ग्रंथोनी एक सूची घणी शोधखोल पूर्वक तैयार करी हतो. तेमां कयो ग्रंथ कई भाषामां कोणे रच्यो हतो तथा तेनु केटलुं परिमाण हतुं इत्यादि वातोनुं संक्षिप्त निरूपण आपलं छे. आनुं नाम 'बहट्रिप्पणिका' छे. ऐतिहासिक आदि दृष्टिए आ बहट्रिप्पनिका घणी महत्त्वनी छे. तेमां आ ग्रंथनो आ रीते परिचय आप्यो छे -- “के वलिभुक्ति-स्त्रीमुक्तिप्रकरणं शब्दानुशासनकृत्शाकटायनाचार्यकृतं तत्संग्रहश्लोकाश्च ९४।" आ उपरथी तेमना समयमां ‘आ ग्रंथ तथा शाकटायन व्याकरणना कर्ता शाकटायन एक ज छे' ए वात खूब प्रसिद्ध हती एम जणाय छे. विक्रानो बारमो-तेरमी शताब्दीना महान् विद्वान प्रसिद्ध आचार्य मलयगिरिसूरिए नन्दिसूत्रनी टीकामां नीचे मुजब शाकटायननो उल्लेख कर्यो छे --- "शाकटायनोऽपि यापनीययतिग्रामाग्रणीः स्वोपज्ञशब्दानुशासनवृत्तावादी भगवतः स्तुतिमेवमाह - 'श्रीवीरममृतं ज्योतिर्नस्वादि सर्ववेदसाम् ।' अत्र च न्यासकृता व्याख्या- 'सर्ववेदसां सर्वज्ञानां स्वपरदर्शनसम्बन्धिसकलशास्त्रानुगतपरिज्ञानानामादि प्रभवं प्रथम मुत्पत्तिकारणम्' इति" पृ० १६AN शाकटायन व्याकरण उपर शाकटायने स्वोपज्ञ अमोघा नामनी वृत्ति रचेली छे. तेमां शाकटायने आवश्यक, छेदसूत्र, कालिकसूत्रो आदि आगम ग्रन्थोनो तथा नियुक्ति भाष्य आदिनो उल्लेख करेलो छे. घणा ज समयथी दिगंबरो आ आगमादि ग्रंथोने मानता नयो, यापनोयो मानता हता. एटले आचार्यश्री मलयगिरिजीए शाकटायन माटे 'यापनीययतिग्रामाग्रणी' तरीके करेलो उल्लेख बोलकुल यथार्थ छे. आथी आ ग्रंथना प्रारंभमां 'यापनीययतिग्रामाग्रणीभदन्तशाकटायनाचार्यविरचिते स्त्रीनिर्वाण केवलिभुक्तिप्रकरणे' एम अमे पण उल्लेख कर्यो छे. कारणके स्त्रीनिर्वाण-केवलिभक्तिप्रकरणना तथा शाकटायन व्याकरणना कर्ता शाकटायन एक ज छे एम मानवामां अमन कशी बाधा जणाती नथी. बृहट्टिप्पनिकाकारे तो ए प्रमाणे जणावेलुं छे ज तेम ज यापनोय संघना सिद्धांतो साथे पण आ बने प्रकरणो सुसंगत छे. आ बने प्रकरणोना कर्ता शाकटायन जेम एकान्ते दिगंबर नथी तेम एकांते श्वेतांबर पण नथी आ वात बने प्रकरणोनी टीका जोतां स्पष्ट जणाई आवे तेम छे. [ जुओ स्त्रीनिर्वाणटीका पृ० २२ वगेरे. ]. आ बने प्रकरणोना कर्ता शाकटायन यापनीय छे ए स्पष्ट छे. उपरांत शाकटायनव्याकरणनी स्वोपज्ञ अमोघा वृत्तिमा आवतो एक महत्वनो उल्लेख पण आ वातने पुष्ट करे छ. शाकटायन व्याकरण १-३-१६८नी वृत्तिमा जणाव्यु छ के -- "शोभनः सिद्धेविनिश्चयः शिवार्यस्य शिवार्येण वा।" आ शिवार्यना सिद्धिविनिश्चयनो उल्लेख स्त्रीनिर्वाण प्रकरण [१० १९] मां आ रीते छे-- "अस्मिन्नर्थे भगवदाचार्यशिवस्वामिनः सिद्धिविनिश्चये युक्त्यभिधायि आर्याद्वयमाह ------ 'यत् संयमोपकाराय वर्तते प्रोक्तमेतदुपकरणम् । धर्मस्य हि तत् साधनमतोऽन्यदधिकरणमाहाहन् ।। अस्तैन्य-बाहिरव्युत्सर्ग-विवेकैषणादिसमितीनाम् । उपदेशनमपदेशो ह्यपधेरपरिग्रहत्वस्य ॥" शिवस्वामी अने शिवार्य एक ज छे, उपरनी बंने आर्याओनो उल्लेख पण साधुओने माटे वस्त्रादि उपधिनुं समर्थन करवा माटे करेलो होवाथी शिवार्य यापनीय हता अने व्याकरणकार तथा स्त्रीनिर्वाणकेवलिभुक्तिप्रकरणकार शाकटायन पण एक ज हता अने यापनीय हता इत्यादि अनेक वातो पण उपरना उल्लेखथी स्पष्ट थई जाय छे. शाकटायन व्याकरणना २।१।१। सूत्रनी अमोघावृत्तिमां “इतिशिवार्यम् । तच्छिवार्यम् । अहोशिवायं वर्तते। शिवार्यशब्दो लोके सुष्ठु प्रथत इत्यर्थ: ।" आ रोते खूब बहुमानपूर्वक पुनः शिवार्यनो उल्लेख करेलो छे ए जोतां तेम ज आराधना अपरनाम भगवती आराधना मूलाराधनाना कर्ता शिवार्यनी अत्यंत प्रसिद्धि जोतां शाकटायनने अभिप्रेत शिवार्य अने भगवती आराधनाना कर्ता शिवार्य पण एक ज छे एम जणाय छे. 'भगवती आराधनाना कर्ता शिवार्य यापनीय हता' एम अनेक युक्तिओथी नाथूराम प्रेमीजीए प्रतिपादित कर्यु छ. शिवार्य यापनीय हता आथी ज, दिगंबरोमां अत्यंत पूज्य गणाता भगवती आराधनानी - "आचेलक्कुद्देसियसेज्जाहररायपिंडकिइकम्मे । वयजेट्रपडिक्कमणे मासं पज्जोसवणकप्पो।। ४२१॥" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001144
Book TitleStree Nirvan Kevalibhukti Prakarane Tika
Original Sutra AuthorShaktayanacharya
AuthorJambuvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1974
Total Pages146
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
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