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अर्धमागधी आगम साहित्य : एक विमर्श
यह संघ यद्यपि नग्नता का पक्षधर था, तथापि श्वेताम्बर आगमों को मानता था । इस संघ के आचार्य अपराजितसूरि की संस्कृत टीका भगवतीआराधना नामक प्राचीन ग्रन्थ पर है । जो मुद्रित भी हो चुकी है। उसमें नग्नता के समर्थन में अपराजितसूरि ने आगम ग्रन्थों से अनेक उद्धरण दिये हैं, जिनमें से अनेक उद्धरण वर्तमान आगमों में नहीं मिलते ।" आदरणीय पंडितजी ने यहाँ जो 'अनेक' शब्द का प्रयोग किया है वह भ्रान्ति उत्पन्न करता है । मैंने अपराजितसूरि की टीका में उद्धृत आगमिक सन्दर्भो की श्वेताम्बर आगमों से तुलना करने पर स्पष्ट रूप से यह पाया है कि लगभग ९० प्रतिशत सन्दर्भो में आगमों की अर्धमागधी प्राकत पर शौरसेनी प्राकत के प्रभाव के फलस्वरूप हुए आंशिक पाठभेद को छोड़कर कोई अन्तर नहीं है । जहाँ किंचित् पाठभेद है वहाँ भी अर्थ-भेद नहीं है । आदरणीय पंडितजी ने इस ग्रन्थ में भगवतीआराधना की विजयोदया टीका १. विजयोदयाटीका की आचाराङ्गसूत्र के साथ तुलना [यह टिप्पन संपादक जंबूवि.की ओर से यहां जोडा गया है] विजयोदया टीका
श्वेतांबरपरंपरा में सम्प्रति उपलभ्यमान आचाराङ्ग तथा चोक्तमाचाराङ्गे-सुदं मे आउस्संतो भगवदा एवमक्खादं-इह खलु संयमाभिमुखा दुविहा इत्थीपुरिसा(स)जादा भवंति, तंजहा-सव्वसमण्णागदे,
xxx णोसव्वसमा(मण्णा)गदे चेव । तत्थ जे सव्वसमण्णागदे थिरांग-हत्थ-पाणि-पादे सव्विंदिय-समण्णागदे तस्स णं णो कप्पदि एगमवि वत्थं धारिउं, एवं परिहिउं, एवं अण्मत्थ एगेण पडिलेहगेण ।
अह पुण एवं जाणिज्जा- उपातिकते हेमंते, प्रिंसु पडिवण्णे, | अह पुण एवं जाणेज्जा ‘उवातिकंते खलु हेमंते, गिम्हे से अथ परिजुण्णमुवधिं पदिट्ठावेज्ज ।
पडिवण्णे' अहापरिजुण्णाई वत्थाई परिठ्ठवेज्जा । (सू०२१४) -४।४२१ टीका, पृ.६१२
पडिलेहणं पादपुंछणं उग्गहं कडासणं अण्णदरं उवधिं | वत्थं पडिग्गाहं कंबलं पादपुंछणं उग्गहं च कडासणं एतेसु पावेज्ज ।
चेव जाणेजा । (सू.८९) - ४।४२१ टीका, पृ०६११
तथा वत्थेसणाए वुत्तं- “तत्थ ये से हिरिमणे सेगं वत्थं वा | जे णिग्गंथे तरुणे जुगवं बलवं अप्पायंके थिरसंघयणे से एगं धारेज्जपडिलेहणगं बिदियं । तत्थ ये से जुग्गिदे दे से दुवे | वत्थं धारेज्जा, णो बितियं । (सू०५५३) वत्थाणि धारिज्ज, पडिलेहणगं तदियं । तत्थ ये से परिसा(सहा)ई अणधिहास(से) स्स(से) तओ वत्थाणि धारेज, पडिलेहणं चउत्थं ।" -४|४२१ टीका, पृ०६११
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