________________
अर्धमागधी आगम साहित्य : एक विमर्श
जो लोग चौरासी आगम मान्य करते हैं वे दस प्रकीर्णकों के स्थान पर पूर्वोक्त तीस प्रकीर्णक मानते है । इसके साथ दस नियुक्तियों तथा यतिजीतकल्प, श्राद्धजीतकल्प, पाक्षिकसूत्र, क्षमापनासूत्र, वन्दित्तु, तिथि-प्रकरण, कवचप्रकरण, संसक्तनियुक्ति और विशेषावश्यकभाष्य को भी आगमों में सम्मिलित करते हैं। ___ इस प्रकार वर्तमानकाल में अर्धमागधी आगम साहित्य को अंग, उपांग, प्रकीर्णक, छेद, मूल और चूलिकासूत्र के रूप में वर्गीकृत किया जाता है, किन्तु यह वर्गीकरण पर्याप्त परवर्ती है । १२ वीं शती से पूर्व के ग्रन्थों में इस प्रकार के वर्गीकरण का कहीं कोई उल्लेख नहीं मिलता है । वर्गीकरण की यह शैली सर्वप्रथम हमें आचार्य श्रीचन्द की "सुखबोधासमाचारी' (ई.सन्.१११२) १. "नाणं पंचविहं पन्नत्तं तंजहा-आभिणिबोहियनाणं सुयनाणं ओहिनाणं मणपजवनाणं केवलनाणं......। जइ सुयनाणस्स उद्देसो......किं अंगपविट्ठस्स...... अंगबाहिरस्स....... आवस्सगस्स...... आवस्सगवइरित्तस्स....... कालियस्स....... उक्कालियस्स...... किं दसवेयालियस्स कप्पियाकप्पियस्स चुल्लकप्पसुयस्स महाकप्पसुयस्स पमायापमायस्स उववाइयस्स रायपसेणइयस्स जीवाभिगमस्स पन्नवणाए महापन्नवणाए नंदीए अणुओगदाराणं देविंदत्थयस्स तंदुलवेयालियस्स चंदावेज्झयस्स गणिविज्जाए पोरिसिमंडलस्स मंडलपवेसस्स विज्जाचरणविणिच्छयस्स झाणविभत्तीए मरणविभत्तीए आयविसोहीए मरणविसोहीए संलेहणासुयस्स वीयरागसुयस्स विहारकप्पस्स चरणविहीए आउरपच्चक्खाणस्स महापच्चक्खाणस्स, सव्वेसिं पि एएसिं उद्देसो समुद्देसो अणुन्नाऽणुओगो पवत्तइ, जइ कालियस्स उद्देसो समुद्देसो अणुनाऽणुओगो पवत्तइ किं उत्तरज्झयणाणं दसाणं कप्पस्स ववहारस्स इसिभासियाणं निसीहस्स महानिसीहस्स जंबुद्दीवपन्नत्तीए चंदपन्नत्तीए सूरपन्नत्तीए दीवसागरपन्नत्तीए खुड्डियाविमाणपविभत्तीए महल्लियाविमाणपविभत्तीए अंगचूलियाए वग्गचूलियाए विवाहचूलियाए अरुणोंववायस्स गरुलोववायस्स धरणोववायस्स वेसमणोववायस्स वेलंधरोववायस्स देविंदोववायस्स उट्ठाणसुयस्स समुट्ठाणसुयस्स नागपारियावलियाणं निरयावलियाणं कप्पियाणं कप्पवडिसयाणं पुप्फियाणं पुप्फचूलियाणं वन्हिदसाणं आसीविसभावणाणं दिट्ठीविसभावणाणं चारणभावणाणं महासमणभावणाणं तेयगनिसग्गाणं?. सव्वेसिपि एएसिं उद्देसो समद्देसो अणन्नाऽणुओगो पवत्तइ, जइ अंगपविट्ठस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्नाऽणुओगो पवत्तइ किं आयारस्स सूयगडस्स ठाणस्स समवायस्स विवाहपन्नत्तीए नायाधम्मकहाणं उवासगदसाणं अंतगडदसाणं अणुत्तरोववाइयदसाणं पण्हावागरणाणं विवागसुयस्स दिट्टिवायस्स.?, सव्वेसि पि एएसिं उद्देसो समुद्देसो अणुनाऽणुओगो पवत्तइ, इमं पुण पठ्ठवणं पडुच्च इमस्स साहुस्स इमाए साहुणीए वा अमुगअंगस्स अमुगसुयखंधस्स वा उद्देसनंदी अणुन्नानंदी वा पवत्तइ ॥ ॥ नंदी सम्मत्ता ॥
इयाणिं उवंगा- आयारे उवाइयं उवंगं १ सूयगडे रायपसेणइयं २ ठाणे जीवाभिगमो ३ समवाए पन्नवणा ४ भगवईए सूरपन्नत्ती ५ नायाणं जंबुद्दीवपन्नत्ती ६ उवासगदसाणं चंदपन्नत्ती ७ तिहिं तिहिं आयंबिलेहिं एक्केवं उवंगं वच्चइ, नवरं तओ पन्नत्तीओ कालियाओ संघट्ट च कीरइ, सेसाण पंचण्हमंगाणं मयंतरेण निरावलियासुयखंधो उवंगं, तत्थ पंच वग्गा निरयावलियाउ कप्पवडिंसियाउ पुप्फियाउ पुप्फचूलियाउ वण्हीदसाउ, नंदिं कडित्तु निरयावलियासुयखधं उद्दिसिय पढमो वग्गो उद्दिस्सइ, तत्थ दस अज्झयणा, एवं बीय-तइय-चउत्थवग्गेसु वि दस २ अज्झयणा, पंचमवग्गे बारस अज्झयणा, आइल्ला अंतिल्ला भणिऊण सव्ववग्गेसु नव २ काउस्सग्गा कीरंति, पंचसु वग्गेसु पंच दिणा ५, दो सुयखंधे २, सव्वे सत्त दिणा ७ ॥ निरयावलियासुयखंधो सम्मत्तो ॥ इयाणि पइन्नगा
अणुओगदाराई देविंदत्थओ तंदुलवेयालियं चंदावेज्झयं आउरपच्चक्खाणं गणिविज्जा एवमाइया, जोगाणं मज्झे निव्वीयदिणे एक्कदिणेण उद्दिसंति समुद्दिसंति अणुन्नवंति य ॥ बाहिरजोगविही ॥" - सुखबोधासामाचारी ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org