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॥ श्री सिद्धाचलमण्डन-श्रीऋषभदेवस्वामिने नमः ॥
॥ श्री शंखेश्वरपार्श्वनाथाय नमः ॥
॥ श्री अजाहरापार्श्वनाथाय नमः ॥ ॥ श्री महावीरस्वामिने नमः । श्री गौतमस्वामिने नमः ॥
|| श्री सद्गुरुदेवेभ्यो नमः ॥
किञ्चिद् वक्तव्यम् श्रमण भगवान् महावीर परमात्मा के शिष्य पंचम गणधर भगवान् सुधर्मस्वामिविरचित श्री समवायांगसूत्र का परम्परा से वर्तमान में जो स्वरूप हमें प्राप्त है उसका अतिप्राचीन तालपत्र एवं कागज पर लिखित आदर्शों के आधार से संशोधन एवं संपादन कर के हमने अनेक अनेक परिशिष्टों के साथ मुंबई स्थित श्री महावीर जैन विद्यालय द्वारा विक्रमसं० २०४१ (ई.स.१९८५) में प्रकाशित किया था. इसी समवायांगसूत्रको विक्रमसं.११२० में आ.भ.श्री अभयदेवसूरि विरचित उपलभ्यमान अतिप्राचीन टीका के साथ प्राचीन-प्राचीनतर-प्राचीनतम तालपत्र एवं कागज पर लिखित आदर्शों के आधार से संशोधन एवं संपादन करके अनेक अनेक उपयोगि परिशिष्टों के साथ हम प्रकाशित कर रहे हैं इसका हमें अत्यंत आनंद है.
जिन प्राचीन हस्तलिखित आदर्शों का हमने उपयोग किया है इनका किंचित् स्वरूप इस सटीक समवायांगसूत्र के प्रथम पृष्ठ एवं अन्तिम पृष्ठ के पादटिप्पन में हमने सूचित कर दिया है.
श्री स्थानांगसूत्र में १ से १० पदार्थों का वर्णन है. श्री समवायांगसूत्रमें १ से १०००, तथा कुछ अधिक संख्यावाले पदार्थों का, एवं अन्य अनेक बातों का भी निर्देश है. विशेष जानने के लिये विषयानुक्रम देखें.
इस में नव परिशिष्ट हैं. किस परिशिष्ट में क्या है इसका वर्णन भी विषयानुक्रम में देखें. ___ अनेक बातों की विचारणा गुजराती प्रस्तावना में एवं संस्कृत आमुख में है. विशेष जिज्ञासु वह पढ लेवें.
इस ग्रन्थ को तैयार करने में जिन जिन महानुभावों ने भिन्न भिन्न रूप से सहयोग दिया है उन सभी को हमारा हार्दिक धन्यवाद. अजाहरा पार्श्वनाथ तीर्थ,
पूज्यपादाचार्यश्रीमद्विजयसिद्धिसूरीश्वरपट्टालङ्कारअजारा (ता.उना),(जिल्ला-जुनागढ) पूज्यपादाचार्यमहाराजश्रीमद्विजयमेघसूरीश्वरशिष्य(गुजरातराज्य) पीन-362530
पूज्यपादसद्गुरुदेवमुनिराजश्रीभुवनविजयान्तेवासी मार्गशीर्षशुक्लचतुर्थी
मुनि जम्बूविजय ता.15-12-2004 बुधवासरः
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