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________________ संदुलवैचारिकप्रकीर्णव (स्त्री शरीर-स्वभाव की उपेक्षा और वैराग्य का उपदेश) (१५४) काम-राग और मोहरूपी विविध पाशों से बँधे हुए, हजारों श्रेष्ठ कवियों के द्वारा इन स्त्रियों की (प्रशंसा में) बहुत कुछ कहा गया है। (वस्तुतः वे ऐसी नहीं हैं) उनका स्वरूप तो इस प्रकार का . स्त्रियाँ (१) स्वभाव से कुटिल, (२) प्रिय वचनों की लता, (३) प्रेम करने में पहाड़ की नदी की तरह कुटिल, (४) हजारों अपराधों की स्वामिनी, (५) शोक उत्पन्न कराने वाली, (६) बल का विनाश करने वाली, (७) पुरुषों के लिए वधस्थान, (८) लज्जा का नाश करने वाली, (९) अविनय की राशि, (१०) पाखण्ड का घर, (११) शत्रुता की खान, (१२) शोक का शरीर अर्थात् शोक की धारक, (१३) मर्यादा को तोड़ने वाली, (१४) राग का घर, (१५) दुराचारियों का निवासस्थान, (१६) सम्मोहन की माता, (१७) ज्ञान को नष्ट करने वाली, (१८) ब्रह्मचर्य को नष्ट करने वाली, (१९) धर्म में विघ्न रूप, (२०) साधुओं की शत्रु, (२१) आचार सम्पन्न के लिए कलंक रूप, (२२) कर्म रूपी रज का विश्राम गृह, (२३) मोक्ष मार्ग की अर्गला और, (२४) दारिद्रता का आवास है। (१५५) वे स्त्रियाँ (२५) कुपित होने से जहरीले सर्प के समान, .(२६) काम के वशीभूत होने से मदमत्त हाथी की तरह, (२७) .दुष्ट हृदया होने से व्याघ्री की तरह, (२८) कालिमा युक्त हृदय होने से तण से आच्छादित कूप के समान, (२९) जादूगर के .. समान सैकड़ों उपचार से आबद्ध कर लेने वाली, (३०) दुर्गाह्य सद्भाव होने पर भी आदर्श की प्रतिमा, (३१) शील को जलाने में वनकण्डे की आग की तरह, (३२) अस्थिर चित्त होने से पर्वत-मार्ग की तरह अनवस्थित, (३३) अन्तरंग व्रण (धाव) के समान कुटिल हृदय, (३४) काले सर्प की तरह अविश्वसनीय, (३५) छल छम युक्त होने से प्रलय की तरह, (३६) संध्या की लालिमा की तरह क्षणिक प्रेम करने वाली, (३७) समुद्र की तरंगों की तरह चपल स्वभाव वाली, (३८) मछली की तरह दुष्परिवर्तनीय, (३९) चंचलता में बन्दर की तरह, (४०) मृत्यु की तरह कुछ भी शेष नहीं रखने वाली, (४१) काल की तरह क्रूर, (४२) वरुण की तरह (काम) पाश रूपी हाथ वाली, (४३) पानी की तरह निम्नानुगामिनी, (४४) कृपण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001142
Book TitleAgam 28 Prakirnak 05 Tandul Vaicharik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1991
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_tandulvaicharik
File Size6 MB
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