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________________ तंदुलवेयालियपइण्णयं क्योंकि इस जीवन का क्षण भर का भी विश्वास नहीं है। यह कोई नहीं जानता कि कब रोग अथवा मृत्यु आकर हमें दबोच ले। (६४) चक्रवर्ती, तीर्थंकर आदि की देह रिद्धि-पहले व्यक्ति हजारों, लाखों वर्ष जीवित रहते थे, उनमें जो विशिष्ठ, चक्रवर्ती, तीर्थकर, यौगलिक आदि पुरुष होते थे, वे अत्यन्त सौम्य सुन्दर, उत्तम लक्षणों से युक्त, श्रेष्ठ गज की गति वाले, सिंह की कमर के समान कटि प्रदेश वाले, स्वर्ण के समान क्रान्ति वाले, रागादि उपसर्ग से रहित, श्रीवत्स आदि शुभ चिह्नों से चिह्नित वक्षस्थल वाले, पृष्ट व मांसल हाथों वाले, चन्द्रमा, सूर्य, शंख, चक्र आदि के चिह्नों से युक्त हथेलियों वाले, सिंह के समान कन्धों वाले, सारस पक्षी के समान स्वर वाले, विकसित कमल के समान मुख वाले,. उत्तम व्यञ्जनों, लक्षणों आदि से परिपूर्ण होते थे। (६५) शतायुष्य मनुष्य का आहार परिमाण-सौ वर्ष जीने वाला मनुष्य बीस युग, दो सौ अयन, छः सौ ऋतु, बारह सौ महिने, चौबीस सौ पक्ष, चार सौ सात करोड़ अड़तालीस लाख चालीस हजार श्वासोश्वास जीता है और इस समयावधि में वह साढ़े बाईस वाह तंदुल खाता है । एक वाह में चार सौ साठ करोड़ अस्सी लाख चावल के दाने होते हैं। इस प्रकार मनुष्य साढ़े बाईस वाह तंदुल खाता हआ साढ़े पाँच कुंभ मंग, चौबीस सौ आढक घृत और तेल, छत्तीस हजार पल नमक खाता है। अगर प्रतिमाह वस्त्र बदले तो सम्पूर्ण जीवन में बारह सौ धोती धारण करता है। यहाँ यह स्पष्ट कर दिया है कि मनुष्य सौ वर्ष तक जीवित रहे और उसके पास यह सब उपभोग योग्य सामग्री हो तभी इस सामग्री का उपभोग वह कर पाता है। जिसके पास खाने को ही नहीं हो वह इनका उपभोग कैसे करेगा ? (६६-८१) समय उच्छ्वास आदि का काल परिमाण-सर्वाधिक सूक्ष्म काल का वह अंश जो विभाजित नहीं किया जा सके, समय कहलाता है। एक उच्छ्वास निःश्वास में असंख्यात समय होते हैं। एक उच्छवास निःश्वास को ही प्राण कहते हैं, सात प्राणों का एक स्तोक, सात स्तोकों का एक लव, सत्तहत्तर लवों का एक मुहूर्त, तीस मुहर्त या साठ घड़ी का एक दिन-रात, पन्द्रह अहोरात्र का एक पक्ष और दो पक्ष का एक महिना होता है। (८२-८६) बारह मास का एक वर्ष होता है। एक वर्ष में ३६० रातदिन होते हैं। एक रात-दिन में एक लाख तेरह हजार एक सौ नब्बे उच्छवास होते हैं। (९४-९८) इससे आगे व्यक्ति को आयु की अनित्यता का बोध कराते हुए कहते हैं कि अज्ञानी निद्रा, प्रमाद, रोग एवं भय की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001142
Book TitleAgam 28 Prakirnak 05 Tandul Vaicharik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1991
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_tandulvaicharik
File Size6 MB
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