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भूमिका इसके अतिरिक्त एक ही नाम के अनेक प्रकीर्णक भी उपलब्ध होते हैं । यथा-'आउर पच्चक्खान' के नाम से तीन ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं ।
इनमें से नन्दी और पाक्षिक के उत्कालिक सूत्रों के वर्ग में देवेन्द्रस्तव, तंदुलवैचारिक, चन्द्रावेध्यक, गणिविद्या, मरणविभक्ति, मरणसमाधि, महाप्रत्याख्यान, ये सात नाम पाये जाते हैं और कालिकसूत्रों के वर्ग में ऋषिभाषित और द्वीपसागरप्रज्ञप्ति ये दो नाम पाये जाते हैं । इस प्रकार नन्दी एवं पाक्षिक सूत्र में नौ प्रकीर्णकों का उल्लेख मिलता है।' ___ यद्यपि प्रकीर्णकों की संख्या और नामों को लेकर परस्पर मतभेद देखा जाता है, किन्तु यह सुनिश्चित है कि प्रकीर्णकों के भिन्न-भिन्न सभी वर्गीकरणों में तंदुलवैचारिक को स्थान मिला है । __ यद्यपि आगमों की श्रृंखला में प्रकीर्णकों का स्थान द्वितीयक है, किन्तु यदि हम भाषागत प्राचीनता और आध्यात्म-प्रधान विषय-वस्तु की दष्टि से विचार करें तो प्रकीर्णक, आगमों की अपेक्षा भी महत्त्वपूर्ण प्रतीत होते हैं। प्रकीर्णकों में ऋषिभाषित आदि ऐसे प्रकीर्णक हैं, जो उत्तराध्ययन और दशवैकालिक जैसे प्राचीन स्तर के आगमों की अपेक्षा भी प्राचीन हैं। __ तंदुलवैचारिक-प्रकीर्णक-तंदुलवैचारिक-प्रकीर्णक एक गद्य-पद्य मिश्रित रचना है। इसका सर्वप्रथम उल्लेख नंदी एवं पाक्षिक सूत्र में प्राप्त होता है। दोनों ही ग्रन्थों में आवश्यक-व्यतिरिक्त उत्कालिक श्रुत के अन्तर्गत तंदुलवैचारिक का उल्लेख मिलता है। पाक्षिक सूत्र वृत्ति में तंदुलवैचारिक का परिचय देते हुए कहा गया है कि-"तंदुलवेयालियं ति तन्डुलानां वर्षशतायुष्कपुरुषप्रतिदिनभोग्यानां संख्याविचारेणोपलक्षितो
१. नन्दीसूत्र-मुनि मधुकर पृष्ठ ८०-८१ । २. ऋषिभाषित की प्राचीनता आदि के सम्बन्ध में देखें
डॉ० सांगरमल जैन-ऋषिभाषित : एक अध्ययन (प्राकृत भारती संस्थान,
जयपुर)। ३. (क) उक्कालिअं अणेगविहं पण्णत्तं तंजहा-(१) दसवेआलिअं....(१४) तंदुलवेआलिअं...""एवमाइ ।
(नन्दी सूत्र-मधुकर मुनि-पृष्ठ १६१-१६२) (ख) नमो तेसिं खमासमणाणं,..."अंगबाहिरं उक्कालियं भगवंतं । तंजहादसवेआलिअं...."तंदुलविआलिअं...."महापच्चक्खाणं ॥
(पाक्षिकसूत्र-देवचन्द्र-लालचन्द्र जैन पुस्तकोद्धार, पृ० ७६)
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