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________________ तंदुलवेगालियपइण्णयं बुद्ध-कथित (३) श्रुतकेवली-कथित (४) पूर्वधर-कथित । पुनः मूलाचार में “इन आगमिक ग्रन्थों का कालिक और उत्कालिक के रूप में वर्गीकरण किया गया है। किन्तु मूलाचार में कहीं भी तंदूलवेचारिक का नाम नहीं आया है। अतः यापनीय परम्परा इसे किस वर्ग में वर्गीकृत करती थी, यह कहना कठिन है। वर्तमान में आगमों के अंग, उपांग, छेद, मूलसूत्र, प्रकीर्णक आदि विभाग किये जाते हैं। यह विभागीकरण हमें सर्वप्रथम विधिमार्गप्रपा (जिनप्रभ-१३वीं शताब्दी) में प्राप्त होता है। सामान्यतया प्रकीर्णक का अर्थ विविध विषयों पर संकलित ग्रन्थ ही किया जाता है। नन्दीसूत्र के टीकाकार मलयगिरि ने लिखा है कि तीर्थंकरों द्वारा उपदिष्ट श्रुत का अनुसरण करके श्रमण प्रकीर्णकों की रचना करते थे। परम्परानुसार यह भी मान्यता है कि प्रत्येक श्रमण एक-एक प्रकीर्णक की रचना करता था। समवायांग सूत्र में "चोरासीइ पण्णग सहस्साइपण्णत्ता" कहकर ऋषभदेव के चौरासी हजार शिष्यों के चौरासी हजार प्रकीर्णकों का उल्लेख किया है। महावीर के तीर्थ में चौदह हजार साधुओं का उल्लेख प्राप्त होता है। अतः उनके तीर्थ में प्रकीर्णकों की संख्या भी चौदह हजार मानी गयी है। किन्तु आज प्रकीर्णकों की संख्या दस मानी जाती है। ये दस प्रकीर्णक निम्न हैं (१) चतुःशरण (२) आतुरप्रत्याख्यान, (३) महाप्रत्याख्यान (४) भत्तपरिज्ञा (५) तंदुलवैचारिक (६) संस्थारक (७) गच्छाचार (८) गणिविद्या (९) देवेन्द्रस्तव और (१०) मरण समाधि । _इन दस प्रकीर्णकों को श्वेताम्बर मूर्तिपूजक सम्प्रदाय आगमों की श्रेणी में मानते हैं। परन्तु प्रकीर्णक नाम से अभिहित इन ग्रन्थों का संग्रह किया जाये तो निम्न बाईस नाम प्राप्त होते हैं (१) चतुःशरण (२) आतुरप्रत्याख्यान (३) भत्तपरिज्ञा (४) संस्थारक (५) तंदूलवैचारिक (६) चंद्रावेध्यक (७) देवेन्द्रस्तव (८) गणिविद्या (९) महाप्रत्याख्यान (१०) वीरस्तव (११) ऋषिभाषित (१२) अजीवकल्प (१३) गच्छाचार (१४) मरणसमाधि (१५) तित्थोगालि (१६) आराधना पताका (१७) द्वीपसागरप्रज्ञप्ति (१८) ज्योतिष्करण्डक (१९) अंगविद्या (२०) सिद्धप्रामृत (२१) सारावली और (२२) जीवविभक्ति । १. विधिमार्गप्रपा-पृष्ठ ५५ । २. समवायांग सूत्र-मुनि मधुकर-८४वां समवाय ३. पइण्णयसुत्ताई-मुनि पुण्यविजयजी-प्रस्तावना पृष्ठ १९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001142
Book TitleAgam 28 Prakirnak 05 Tandul Vaicharik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1991
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_tandulvaicharik
File Size6 MB
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