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________________ तंदुलवैचारिकप्रकीर्णक (१६०) (स्त्रियाँ ) तलवार के समान ( तीक्ष्ण ), स्याही के समान ( कालिमायुक्त), गहन वन के समान ( भ्रमित करने वाली ), कपाट और कारागार के समान ( बन्धन कारक) और प्रवाहशील अगाध जल के समान भयदायक होती है। (१६१) ये स्त्रियाँ सैकड़ों दोषों की गगरी, अनेक प्रकार से अपयश को फैलानेवाली, कुटिल हृदयवाली और कपटपूर्ण विचार वाली होती हैं । इन स्त्रियों के स्वभाव को मतिमान भी नहीं जान सकते हैं। (१६२) वे किसी अन्य को आकर्षित करती हैं, किसी अन्य के साथ रमण करती हैं और किसी दूसरे को आवाज देती हैं। अन्य किसी को पर्दे में और किसी अन्य को वस्त्रों में छिपाकर रखती हैं। . (१६३-१६४) गंगा के बालु-कण, सागर का जल, हिमालय का परिमाण,. उग्र तप का फल, गर्भ से उत्पन्न होने वाले बालक, सिंह की पीठ के बाल, पेट में रहे हुए पदार्थ और घोड़े के चलने की आवाज को बुद्धिमान मनुष्य जान सकते हैं किन्तु महिलाओं के हृदय को नहीं जान सकते हैं । (१६५) इस प्रकार के गुणों से युक्त इन स्त्रियों का बन्दर के समान चंचल मन संसार में विश्वास करने योग्य नहीं होता है। .... (१६६) लोक में जैसे धान्य विहीन खल, पुष्पों से रहित बगीचा, दूध से रहित गाय, तेल से रहित तिलहन (निरर्थक ) है उसी तरह स्त्रियाँ भी सुखहीन होने से निरर्थक हैं। (१६७) जितने समय में आँख मूंदकर खोली जाती हैं, उतने समय में स्त्रियों का हृदय एवं चित्त हजार बार व्याकुल हो जाता है । : ( उपदेश के अयोग्य मनुष्य ) . (१६८) मूर्ख, वृद्ध, विशिष्ट ज्ञान से हीन, निविशेष संसार में शूकर के समान नीच प्रवृत्ति वालों को कुछ भी कहना निरर्थक है। (पिता पुत्र आदि को अशरणता ) (१६९) पुत्र, पिता और बहुत संग्रह किये हुए उस धन से क्या लाभ ? जो मरने के समय किंचित् भी सहारा नहीं दे सके। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001142
Book TitleAgam 28 Prakirnak 05 Tandul Vaicharik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1991
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_tandulvaicharik
File Size6 MB
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