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दीवसागरपण्णत्तिपइण्णयं पुष्करिणियों के मध्य में दधिमुख पर्वत हैं, यह उल्लेख द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, स्थानांगसूत्र, हरिवंश पुराण एवं लोकविभाग आदि ग्रन्थों में मिलता है। इन सभी ग्रन्थों में वनखण्डों को संख्या एवं विस्तार परिमाण भिन्न-भिन्न बतलाया गया है। दधिमुख पर्वतों की संख्या के सन्दर्भ में द्वीपसागर प्रज्ञप्ति तथा स्थानांगसूत्र में कोई उल्लेख नहीं मिलता है किन्तु द्वीपसागर प्रज्ञप्ति में यह उल्लिखित है कि दधिमुख पर्वतों का विस्तार १०.०० योजन तथा ऊँचाई ६४ (हजार) योजन है। हरिवंशपुराण तथा लोकविभाग के अनुसार दधिमुख पर्वत सोलह हैं तथा इनकी लम्बाई, चौड़ाई और ऊँचाई दस-दस हजार योजन है।।
द्वीपसागरप्रज्ञप्ति में दधिमुख पर्वतों के ऊपर जिनमन्दिर कहे गये हैं जबकि लोकविभाग के अनुसार पुष्करिणियों के बाह्य कोने में दधिमुख पर्वतों के समान ३२ रतिकर पर्वत हैं, उन पर्वतों के ऊपर ५२ जिनमन्दिर हैं।
द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, स्थानांगसूत्र, हरिवंशपुराण तथा लोकविभाग आदि ग्रन्थों में यद्यपि यह उल्लिखित है कि चारों दिशाओं वाले अंजन पर्वतों की चारों दिशाओं में चार-चार पुष्करिणियाँ हैं तथापि इनमें से एक भी ग्रन्थ में पूर्व दिशा वाले अंजन पर्वत की चारों दिशाओं में स्थित पुष्करिणियों का कोई उल्लेख नहीं हआ है। पूनः दक्षिण, पश्चिम और उत्तर दिशा वाले अंजन पर्वतों की चारों दिशाओं में बताई गई पुष्करिणियों के नाम यद्यपि लगभग समान हैं, किन्तु किस दिशा में कौनसो पुष्करिणियां स्थित हैं, इस विषयक इन सभी ग्रन्थों में भिन्नता दृष्टिगोचर होती है। द्वीपसागरप्रज्ञप्ति तथा स्थानांगसूत्र में भद्रा आदि जिन चार पुष्करिणियों को दक्षिण दिशा वाले अंजन पर्वत को चारों दिशाओं में स्थित माना है उन्हें हरिवंशपुराण में पूर्व दिशा वाले अंजन पर्वत को चारों दिशाओं में स्थित बतलाया है। द्वीपसागर प्रज्ञप्ति में जो चार पुष्करिणियां पश्चिम दिशा वाले अंजन पर्वत की चारों दिशाओं में मानी गई हैं, उन्हें स्थानांगसूत्र में उत्तर दिशा में, हरिवंश पुराण में दक्षिण दिशा में तथा लोकविभाग में पश्चिम दिशा में स्थित अंजन पर्वत की चारों दिशाओं में स्थित माना गया है। इस प्रकार इन पुष्करिणियों की अवस्थिति को लेकर इन सभी ग्रन्थों में भिन्नता दृष्टिगोचर होती है।
नन्दोश्वर द्वोप के मध्य में चारों विदिशाओं में चार रतिकर पर्वत हैं, यह उल्लेख द्वीपसागर प्रज्ञप्ति, स्थानांगसूत्र, हरिवंश पुराण तथा लोकविभाग आदि ग्रन्थों में मिलता है। इन सभी ग्रन्थों में इन पर्वतों की
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