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________________ भूमिका वना सत्य के इसलिए करीब लगती है क्योंकि स्थानांगसूत्र में भी चारों विदिशाओं में चार शिखरों का उल्लेख हुआ है। नन्दीश्वर द्वीप का विस्तार द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, स्थानांगसूत्र, हरिवंश पुराण एवं लोकविभाग आदि ग्रन्थों में १६३८४००००० योजन बतलाया गया है। द्वीपसागर प्रज्ञप्ति तथा स्थानांगसूत्र के अनुसार नन्दीश्वर द्वीप में ८१९१९५३०० योजन जाने पर अंजन पर्वत आते हैं। हरिवंश पुराण तथा लोकविभाग के अनुसार अंजन पर्वत नन्दीश्वर द्वीप के मध्य में हैं। द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, स्थानांगसूत्र, समवायांग पूत्र एवं लोकविभाग आदि ग्रन्थों में अंजन पर्वतों को ऊँचाई ८४००० योजन मानी गई है। द्वीपसागर प्रज्ञप्ति तथा स्थानांगसूत्र के अनुसार इन पर्वतों की जमीन में गहराई १००० योजन है तथा इनका विस्तार अधोभाग में १०००० योजन एवं शिखर-तल पर १००० योजन है। लोकविभाग में इन पर्वतों का विस्तार मूल, मध्य व शिखर-तल पर भी ऊँचाई के बराबर अर्थात् ८४००० योजन हो माना गया है। पुनः इन पर्वतों की जमीन में गहराई लोकविभाग में १००० योजन ही मानी गई है। द्वीपसागर प्रज्ञप्ति और स्थानांगसूत्र में प्रत्येक अंजन पर्वत के शिखरतल पर जिनमंदिर कहे गये हैं। दोनो ग्रन्थों में जिनमन्दिरों की लम्बाई १०० योजन तथा चौड़ाई ५० योजन मानो गई है. किन्तु ऊँचाई के परिमाण को लेकर दोनों ग्रन्थों में भिन्नता दृष्टिगोचर होती है। द्वीपसागर प्रज्ञप्ति के अनुसार इन मन्दिरों की ऊँचाई ८५ योजन है जबकि स्थानांगसूत्र में यह ऊँचाई ७२ योजन मानी गई है। द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, स्थानांगसूत्र, जीवाजीवाभिगमसूत्र, हरिवंश पुराण तथा लोकविभाग के अनुसार अंजन पर्वत के १००००० योजन अपान्तराल के पश्चात् पूर्वादि अनुक्रम से चारों दिशाओं में १००००० योजन वाली चार-चार पुष्करिणियाँ हैं। यद्यपि इन सभी ग्रन्थों में यह माना गया है कि इन पुष्करिणियों की चारों दिशाओं में क्रमशः चार-चार वनखण्ड हैं किन्तु वनखण्डों का परिमाण सभी ग्रन्थों में भिन्न-भिन्न बतलाया गया है। द्वीपसागरप्रज्ञप्ति में इन वनखण्डों की लम्बाई १००००० योजन तथा चौड़ाई मात्र ५०० योजन मानी गई है। जीवाजीवाभिगमसूत्र में लम्बाई सविशेष १२००० योजन तथा चौड़ाई ५०० योजन मानी गई है । हरिवंश पुराण तथा लोकविभाग में इन ननखंडों की लम्बाई १००००० योजन तथा चौड़ाई ५०००० योजन बतलाई गई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001141
Book TitleDivsagar Pannatti Painnayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1993
Total Pages142
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_anykaalin
File Size6 MB
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